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Friday, February 18, 2011

प्राचीन भारत में देह-शोषित स्त्रियां




- डॉ. शरद सिंह


         प्राचीन भारत के समाज में गणिकाओं और देवदासियों का भी विशिष्ट स्थान था। ये गणिकाएं और देवदासियां नृत्य, संगीत तथा वादन  द्वारा जनसाधारण का मनोरंजन किया करती थीं। गणिकाओं और देवदासियों में अन्तर था, गणिकाएं जिन्हें नगरवधू भी कहा जाता था, नगर के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति समर्पित होती थीं जबकि देवदासियां मन्दिर के प्रति समर्पित होती थीं।  सिन्धु घाटी से उत्खनन में प्राप्त नर्तकी की मूर्ति के बारे में कुछ विद्वानों का मत है कि यह राजनर्तकी अथवा गणिका की भी हो सकती है। सिन्धु सभ्यता में नृत्य एवं गायन का प्रचलन था अतः इस तथ्य को मानने में कोई दोष दिखाई नहीं देता है कि सैन्धव युग में सार्वजनिक मनोरंजन के लिए जन को समर्पित नर्तकिएं रही होंगी।
           गणिकाएं - वे स्त्रियां जो पारिवारिक एवं वैवाहिक संबंधों से मुक्त रह कर अपने कला-कौशल के द्वारा समाज के सभी लोगों का मनोरंजन का कार्य करती थीं, गणिकाएं कहलाती थीं। वे परिवार के सदस्य के रूप में पारिवारिक अनुष्ठानों में भाग नहीं ले सकती थीं किन्तु समाज के द्वारा वे बहिष्कृत नहीं थीं। बौद्ध साहित्य से गणिकाओं का स्थिति पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। बौद्धकाल के अनेक गणराज्यों में यह प्रथा थी कि अत्यधिक सुन्दर स्त्री अविवाहित रह कर नृत्य-गान के द्वारा सब का मनोरंजन कर सकती थी। गणराज्य के सब निवासियों द्वारा समान रूप से उपभोग किए जा सकने के कारण ऐसी स्त्रियों को गणिकाकहा जाता था। वज्जिसंघ की राजधानी वैशाली की अम्बपाली इसी प्रकार की गणिका थी। वह अत्यंत सुन्दर, विदुषी तथा विभिन्न ललितकलाओं में पारंगत थी। महावग्ग के अनुसार वैशाली की यात्रा से लौट कर आए हुए एक श्रेष्ठि ने मगधराज बिम्बसार को यह बताया था कि समृद्ध तथा ऐश्वर्य सम्पन्न वैशाली नगरी में अम्बपाली नाम की गणिका रहती है जो परम सुन्दरी, रमणीया तथा गायन-वादन तथा नृत्य में भी प्रवीण है।
           बिम्बसार के समय राजगृह में भी एक गणिका थी जिसका नाम सालवती था। मौर्यकालीन गणिकाओं के बारे में कौटिल्य ने अर्थशास्त्रमें विस्तृत जानकारी दी है। अर्थशास्त्रसे ज्ञात होता है कि आवश्यकता पड़ने पर गणिकाएं गुप्तचर का कार्य भी करती थीं। प्राचीन ग्रंथों में मथुरा तथा श्रावस्ती की गणिकाओं का भी उल्लेख मिलता है। मथुरा और श्रावस्ती की गणिकाएं अनेक कलाओं में प्रवीण थीं। मानसोल्लास के अनुसार राजा लोग जब कवियों और विद्वानों की गोष्ठियों का आयोजन करते थे उस समय गणिकाओं को भी आमंत्रित किया जाता था। इन्द्रध्वज के उत्सव के समय भी गणिका निगम को निमंत्रण भेजा जाता था। इससे स्पष्ट है कि समाज में गणिकाओं का पर्याप्त आदर था किन्तु एक पारिवारिक स्त्री के रूप में गणिकाओं का समाज में कोई स्थान नहीं था। एक बार गणिका बनने के बाद वे पुनः गृहस्थ स्त्री नहीं बन सकती थीं। उन्हें सार्वजनिक संपत्ति समझा जाता था।
              उल्लेखनीय है कि विभिन्न राजाओं द्वारा व्यभिचार, जुए और पशु-वध को रोकने के प्रयास किए गए किन्तु वेश्यावृत्ति को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया। इससे स्पष्ट होता है कि गणिकाओं को समाज द्वारा स्वीकार किया जाता था।
                देवदासियां - जैसा कि देवदासीशब्द से ही ध्वनित है कि देवदासी वे स्त्रियां होती थीं जिनका कार्य मंदिर के देवताकी सेवा करना होता था। देवदासी बनाए जाने की प्रक्रिया के अंतर्गत कन्याओं का विवाह मंदिर के प्रतिष्ठापित देवता के साथ कर दिया जाता था। विवाह के बाद उस कन्या का कर्त्तव्य हो जाता था कि वह देवता के प्रति समर्पित रहे तथा तथा किसी पुरुष के प्रति आकृष्ट न हो। देवदासियां किसी पुरुष से विवाह नहीं कर सकती थीं। कुछ व्यक्ति अपनी कन्याओं को मंदिर के लिए अर्पित करते थे। ये देवदासियां मंदिरों में नृत्य करती थीं।  गुजरात के मंदिरों में 20 हजार से अधिक देवदासियां थीं। बंगाल के द्युम्नेश्वर और ब्रह्मानेश्वर मंदिरों में भी अनेक देवदासियां रहती थीं। कटक के निकट शोभनेश्वर शिव मंदिरों में भी अनेक देवदासियां रहती थीं। काश्मीर और सोमनाथपुरम के मंदिर में भी अनेक देवदासियां रहती थीं। जाजल्लदेव चाहमान (1090 ई.) के दो अभिलेखों से स्पष्ट है कि उसने स्वयं इस प्रथा को प्रोत्साहन दिया था।
             कौमुदी महोत्सव,उदक सेवा महोत्सव तथा धार्मिक उत्सवों के अवसर पर देवदासियां नृत्य करती थीं तथा विभिन्न पुरुष उनके साथ सहवास करती थे जिससे धीरे-धीरे देवदासी प्रथा में व्यभिचार व्याप्त होने लगा तथा देवदासी के रूप में स्त्रियों का शोषण बढ़ गया। दक्षिण भारत के मंदिरों में यह प्रथा दीर्घकाल तक अबाध गति से चलती रही।
             रूपाजीवाएं - स्वतंत्र रूप से वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियां रूपाजीवा कहलाती थीं। नृत्य-गायन जैसी किसी ललितकला में निपुण होना इनके लिए आवश्यक नहीं था। वात्सयायन ने कामसूत्रमें ऐसी स्त्रियों को कामकला में निपुण बताया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्रमें भी रूपाजीवाओं का उल्लेख मिलता है। रूपजीवाएं भी दैहिक शोषण की शिकार रहती थीं। उन्हें भी सार्वजनिक उपभोग की वस्तु माना जाता था।

48 comments:

  1. वैश्यावृत्ति एक अभिशाप है मगर फिर भी इनकी उपस्थिति समाज में गन्दगी बढ़ने से रोकने के लिए ठीक ठहराई जाती रही है ! अफ़सोस है की सरकार भी इन महिलाओं के लिए कुछ नहीं करती ! पेट भरने के लिए पूरे जीवन नारकीय और जानवरों से बदतर जिंदगी गुजारने पर मजबूर हैं यह " देव दासियाँ " !
    शुभकामनायें आपको !

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  2. सतीश सक्सेना जी,
    आपके विचारों ने मेरा उत्साहवर्द्धन किया...आपको हार्दिक धन्यवाद।

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  3. प्राचीनकाल से ही स्त्री को भोग्या मानकर कभी मंदिरों में ,कभी राजप्रासादों में तो कभी राजदरबारों में विभिन्न नामों से झूठ-मूठ में प्रतिष्ठित किया जाता रहा है | हर काल में विरोध स्वर भी मुखरित हुए हैं और नारी सम्मान के लिए आन्दोलन भी हुए हैं किन्तु आज वृहत स्तर पर नारी सम्मान एवं नारी जागरूकता के लिए सार्थक प्रयास की जरूरत है |
    आपका इतिहासपरक लेख बहुत सी नयी जानकारियाँ देने में सक्षम है |
    लेखनी स्तुत्य है !

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  4. बेहद शोध पूर्ण आलेख पढकर बहुत सी जानकारियां प्राप्त हुई। आभार आपका इस ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए।

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  5. आदर्णीय मैम,
    क्या आप कृप्या यह बता सकती हैं कि आपने अपने ब्लॉग का बैनर कैसे बनाया और उसमें फोटो कैसे लगाई...
    हम आअके आभारी रहेंगे...हमारा ईमेल है...chandar30@gmail.com
    सादर
    डॉ. चन्द्रजीत सिंह

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  6. गणिकाएं गणराज के समस्त गण की सम्पत्ति मानी जाती थी। कुछ को विषकन्याएं बना कर उन्हें गुप्तचर का भार सौंपा जाता था। अच्छा लेख॥

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  7. इस जानकारी वर्द्धक आलेख के लिये आपका आभार...

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  8. भारत में नारी देह का शोषण अनाड़ी काल से होता आया है ...नाम अलग अलग दे दिए जाते हैं ...आपके इस लेख से बहुत पुष्ट जानकारी मिली ..आभार

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  9. बहुत अच्छा लेख है -
    समाज की कुप्रथाएँ अनादिकाल से चलती ही आयीं हैं उदास मन से इतिहास पढ़ते हैं .बंधे हातों से लिखते भी हैं .समय गतिमान है आगे बढ़ जाता है -होता कुछ भी नहीं .....!!
    एक सोच दे गयी है आपकी रचना -
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  10. नाम चाहे कुछ भी रख दें इनका..शोषण तो हुआ है इनका बहुत ज्यादा.
    अभी के समय में बहुत तो ऐसे हैं जो की इस कुप्रथा में धकेल दी जाती हैं... साथ ही कुछ प्रतिशत उनका भी है जो पैसे के लालच में ये सब अपने परिवार से छुप छुपा के भी करती हैं...
    एक सार्थक संकलन...
    प्रणाम

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  11. हालात और बदतर हुए हैं...

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  12. मानव द्वारा मानव के शोषण का ही एक रूप प्रस्तुत किया गया है. यह सब भारतीय-सभ्यता एवं संस्कृति के पतन काल की बातें हैं. वैदिक युग में ऐसा नहीं था.

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  13. महिलाओं के साथ आदिकाल से ही जुल्म
    होते आ रहे हैं ..जो आज भी जारी हैं ..
    आपकी लेखनी ने मन को झकझोर कर
    रख दिया है और वर्षों पुराने इस गीत की
    याद आ गई
    औरत ने जनम दिया मर्दों को,
    मर्दों ने उसे बाज़ार दिया !

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  14. जो सब्जेक्ट आपने चुना है वह अक्सर
    मर्दों की पसंद होती है यह काबिले तारीफ़ है
    की आपने महिलाओं पे हो रहे जुल्म को
    समाज के सामने लाने का साहस किया
    इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं !

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  15. दुनियां भर के सभी समाजों में ये प्रथाये थीं और हैं...ये प्रथायें महिला अत्याचार नहीं थे अपितु उन्हें अपना स्वतन्त्र जीवन जीने के लिये सामाजिक मान्यता के रूप थे( जैसे आजकल कई पश्चिमी देशों में यह कानूनन जायज़ है, लाइसेन्स सहित) .....हर प्रथा की भांति ये प्रथायें भी मानव लोलुपता व अनाचरण के वर्धन के साथ कुप्रथाएं होती गईं---

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  16. बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख . मुझे आचार्य चतुरसेन की वैशाली की नगरवधू की याद दिला गयी .

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  17. बेहद शोध पूर्ण आलेख लिखने हेतु बधाई हो | कृपया यहाँ भी पधारे My Indore City

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  18. शोषण की प्रथाएं सदियों पुरानी हैं .... कुछ अब भी जारी हैं कुछ का बस स्वरुप बदला है..... सार्थक लेख

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  19. ♛- सुरेन्द्र सिंह ‘झंझट’ जी
    ♛- मनोज कुमार जी
    ♛- चंदर मेहर जी
    ♛- सी एम प्रसाद जी
    ♛- सुशील बाकलीवाल जी

    मेरे ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है!
    आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद..... इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

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  20. ✿-संगीता स्वरुप जी
    ✿-अनुपमा जी
    ✿-राजेश कुमार ‘नचिकेता’ जी
    ✿-सी एम प्रसाद जी
    ✿-रवि कुमार जी
    ✿-विजय माथुर जी

    आप सभी को शुभकामनाओं और प्रोत्साहन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
    आप सभी का सदा स्वागत है।

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  21. ❥-सुरेश शर्मा जी
    ❥-जयन्त जी
    ❥-डॉ. श्याम गुप्ता जी
    ❥-आशीष जी
    ❥-देवेन्द्र गहलोत जी
    ❥-डॉ॰ मोनिका शर्मा जी

    आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद.....
    मेरे ब्लॉग पर आप सभी का स्वागत है!
    इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें।

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  22. सुरेश शर्मा जी,
    मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा।

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  23. राज शिवम जी,
    आपका स्वागत है। मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए आपका आभार...
    सम्वाद बनाए रखें।

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  24. सिद्धार्थ जोशी जी,
    मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद! सम्वाद बनाए रखें।
    आपका स्वागत है।

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  25. विजय माथुर जी,
    आपका स्वागत है।
    मेरे ब्लॉग से अनुसरण करने हार्दिक धन्यवाद! सम्वाद क़ायम रखें।

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  26. यशवन्त जी,
    मेरे ब्लॉग से अनुसरण करने हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है! आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा।

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  27. agebob,
    Thank you very much for coming to blog....It's pleasure to me .

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  28. नेहा जैन जी,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  29. अरविन्द पाण्डेय जी,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    सम्वाद बनाए रखें।

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  30. आदरणीय शरद सिंह जी
    नमस्कार !
    जानकारी वर्द्धक आलेख के लिये आपका आभार...

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  31. पूर्ण आलेख पढकर बहुत सी जानकारियां प्राप्त हुई।
    प्रेमदिवस की शुभकामनाये !
    कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
    माफ़ी चाहता हूँ

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  32. अच्छा विषय लिया है आपने, बहुधा ऐसे विषयों पर कन्नी काट लेते हैं हम so called civilised लोग।
    ’वैशाली की नगरवधू’ पढ़ा था कभी, याद आ गया।

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  33. संजय भास्कर जी,
    देर से सही, आपका आना सुखद लगा ...हार्दिक धन्यवाद!
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

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  34. संजय ( मो सम कौन ?)जी,
    हार्दिक धन्यवाद!
    आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा।
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

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  35. इस विषय में काफी कुछ मैंने पढ़ा था ..परन्तु काफी समय से इतनी गहराई से नारी शोषण के बारे में सोंचा नहीं था ..आपके लेख से कई अनछुए पहलू भी आँखों के सामने आ जाते हैं .. जो उस समय के समाज की सूरत और सीरत को सामने रख देते हैं ..गणिकाओं,देवदासियों.रूपजीवाओं सभी रूपों में कही न कही नारी को भोग्य मात्र माना गया है..
    किसी न किसी रूप में ...लेखक यशपाल की "दिव्या" आँखों के सामने लगभग ०९ वर्षों के बाद फिर महसूस होती है ..और चार्वाक दर्शन का अनुयाई "मारीश" ....
    अत्यंत सुन्दर, विदुषी तथा विभिन्न ललितकलाओं में पारंगत नारी के इस शोषण से आज फिर नारी की बिकॉऊ छवि जो मिडिया और विज्ञापनों में आ रही है की तुलना करने से लगता है की क्या वास्तव में हम इक्कीसवीं शदी में ही जी रहे हैं या नहीं ...हालत आजकल तो और भी बदतर हो गए है नारी मात्र भोग्या ही नहीं है .
    .काफी समय बाद ब्लॉग में आया था मन फ्रेश हो गया..
    अच्छी रचना ..

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  36. जावेद जी,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  37. सारा सच,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  38. कौशलेन्द्र जी,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  39. प्राच्य भारतीय इतिहास ...जो कि आपका विषय रहा है ...उसमें मेरी भी रूचि है.
    जहां तक नारी के दैहिक शोषण की बात है ...यदि यह वृत्ति स्वैच्छिक है तो निंदनीय होकर भी शोषण नहीं है. कोई विचार या वृत्ति थोपे जाने पर ही शोषण का कारण है अन्यथा नहीं. स्त्री-पुरुष काम संबंधों को लेकर बहुत चर्चाएँ होती हैं ....शायद सर्वाधिक .......इसे लेकर की जाने वाली प्रतिक्रियाएं समाज की मान्यताओं के सापेक्ष हैं ... कहीं यह निंदनीय है तो कहीं स्वीकार्य. लगता है यह विषय नित गवेषणा का विषय बना ही रहेगा. तमाम नैतिकताओं ...सामाजिक बंधनों के बाद भी स्त्री-गमन को प्रतिबंधित कर पाना कल्पना का ही विषय है यथार्थ का नहीं .....हाँ ! स्त्री के सम्मान की रक्षा और उसके दैहिक शोषण को रोकने का उत्तरदायित्व पूरे समाज पर है ...जिसमें स्वयं स्त्री भी शामिल है......
    मंथन को प्रेरित करती इस पोस्ट के लिए धन्यवाद. देवदासियों के बारे में कुछ और जानकारी दे सकें तो अच्छा होगा.

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  40. कौशलेन्द्र जी,
    आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया....आपका सुझाव अच्छा है।
    अपनी अगली पोस्ट में देवदासियों के बारे में कुछ और जानकारी देने का प्रयास करूंगी। बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

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  41. adab aur salam,

    main khud history se graduate hun.
    aise aalekh likhna mera bhi sauk hai.

    kafi khojpurn rachna, prasangik aur sarthak.

    aap se kafi sikhna hai,

    http://afsarpathan.blogspot.com

    par kabhi fursat me visit karen.

    afsar
    09889807838

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  42. अफसर खान जी,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

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  43. आलोक जी,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  44. शुभम जैन जी,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  45. अमित शर्मा जी,
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!

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  46. आदरणीय शरद सिंह जी,
    सादर नमन!

    बहुत ही विचारोत्तेजक एवं शोधपरक जानकारी प्रस्तुत की है आपने.
    आपके सभी ब्लॉगों में एक सहज आकर्षण है.

    अच्छा लगा.
    धन्यवाद.

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  47. बॉबी जी,
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    आपका स्वागत है!
    आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

    अपने ब्लॉग में भी कोई पोस्ट डालें।

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  48. मनोज जी,
    आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया....
    मेरे ब्लॉग्स की प्रशंसा के लिए आभारी हूं...
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

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