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Sunday, April 10, 2011

प्राचीन भारत में स्त्रियों के प्रति समाज का दृष्टिकोणः भाग-तीन

- डॉ. शरद सिंह
  
           गुप्त काल  
गुप्त काल में स्त्रियों की सामाजिक दशा में पहले की अपेक्षा गिरावट आई फिर भी अनेक मामलों में समाज का दृष्टिकोण सकारात्मक था।
  • इस काल में स्त्रियों के सामाजिक अधिकारों में कटौती कर की गई किन्तु फ़ाह्यान एवं ह्वेनसांग के अनुसार इस समय पर्दा प्रथा प्रचलन में नहीं थी।
  • यदि किसी स्त्री का अपहरण कर लिया जाता तो उन्हें पुनः सामाजिक सम्मान नहीं मिलता था। किन्तु उन्हें प्रायश्चित अनुष्ठान के बाद पति एवं परिवार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता था।
  • नारद एवं पाराशर स्मृति में 'विधवा विवाह' के प्रति समर्थन जताया गया है।जिससे स्पष्ट होता है कि गुप्त काल में विधवा विवाह का चलन था।
गुप्तकालीन नारी प्रतिमा-मथुरा संग्रहालय
  • मनु के अनुसार जिस स्त्री को पति ने छोड़ दिया हो या जो विधवा हो गई हो, यदि वह अपनी इच्छा से दूसरा विवाह करें तो उसे 'पुनर्भू' तथा उसकी संतान को 'पनौर्भव' कहा जाता था।
  • गुप्तकालीन समाज में वेश्याओं के अस्तित्व के भी प्रमाण मिलते हैं। यद्यपि समाज में वेश्यावृति को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था। गुप्त काल में वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को गणिकाकहा जाता था। जो वृद्ध हो जाती थी उन वेश्याओं को कुट्टनीकहा जाता था ।कुट्टनी अथवा ‘कुटनी’ वेश्याओं एवं ग्राहकों के मध्य दलाली का कार्य करती थी। ये विलासी धनिकों के लिए युवतियों को बहलाती-फुसलाती थीं।
  • ‘मेघदूत’ मेंउज्जयिनीके महाकाल मंदिर में देवदासियों के होने वर्णन मिलता है।   
  • गुप्त काल में स्त्रियों को अचल सम्पत्ति पाने का अधिकार था। कात्यायन ने स्त्री को अचल सम्पत्ति की स्वामिनी माना। याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार पुत्र के अभाव में पुरुष की सम्पत्ति पर उसकी पत्नी का प्रथम अधिकार होता था। याज्ञवल्क्य, बृहस्पति और विष्णु ने भी संतानविहीन पति के मरने पर विधवा पत्नी को उसका उत्तराधिकारी माना।   
गुप्तकालीन सिक्के में कुमारदेवी और चन्द्र गुप्त
  • गुप्त काल में रानियों को तत्कालीन सिक्कों में बराबरी से स्थान दिया गया। चन्द्र गुप्त ने लिच्छवी राजवंश की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था। चन्द्र गुप्त कालीन सिक्कों में कुमारदेवी और चन्द्र गुप्त दोनों को बराबरी से स्थान दिया गया है।  
  • विज्ञानेश्वर के अनुसार स्त्रियों केस्त्रीधनपर प्रथम अधिकार उसकी पुत्रियों का होता था। स्त्रियों की सम्पत्ति के अधिकार पर सर्वाधिक व्याख्यायाज्ञवल्क्य ने दी है। याज्ञवल्क्य एवं बृहस्पति ने स्त्री को पति की सम्पत्ति का उत्तराधिकारिणी माना है।
  • इस समय उच्च वर्ग की कुछ स्त्रियों के विदुषी और कलाकार होने का उल्लेख मिलता है।‘अभिज्ञान शकुन्तलम्’ में अनुसूया को इतिहास का ज्ञाता बताया गया है।मालवी माधव’ में मालती कोचित्रकलामें निपुण बताया गया है।
  • ‘अमरकोष’ में स्त्री शिक्षा के लिए 'आचार्या', 'उपाध्यया' जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है।

22 comments:

  1. गुप्त काल में स्त्रियों कि दशा के बारे में आलेख अच्छी जानकारी दे रहा है .." कुटनी " शब्द मैंने सुना तो था पर सही अर्थ कि जानकारी आज इस लेख को पढ़ कर मिली ..आभार ..वरना मैं तो समझती थी कि जो षड्यंत्रकारी स्त्रियां होती हैं ( घर में षड्यंत्र करने वाली ) उन्हें कुटनी कह दिया जाता होगा ..:):)

    गुप्त काल में भी स्त्रियों को काफी अधिकार प्राप्त थे ....

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  2. संगीता स्वरुप जी,
    कालान्तर में घर में निम्नस्तरीय षड्यंत्र करने वाली स्त्रियों के लिए भी " कुटनी " शब्द प्रयोग में लाया जाने लगा क्योंकि ‘कुट्टनी‘ अथवा ‘कुटनी’भी सभ्य घरों की युवतियों को बहलाने-फुसलाने के लिए षड्यंत्र करती थीं।

    अत्यंत आभारी हूं कि आपने मेरे लेख को इतने ध्यान से पढ़ा और पसन्द किया ।
    हार्दिक धन्यवाद!
    इसी तरह सम्वाद बनाएं रखें।

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  3. "कूट" शब्द से कुट्टीनी शब्द बना है. राजमहलों में इनकी सेवायें कूटनीतिक(जासूसी एवं षड़यंत्र ) कार्यों के लिए ली जाती रही हैं. समाज के संस्कार के अनुरूप समाज में स्त्रियों की स्थितियों में परिवर्तन होते रहे हैं. तो भी तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो पूरे विश्व में स्त्री अधिकार/ सम्मान का भारतीय इतिहास उज्वल रहा है. और आज भी है.

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  4. कौशलेन्द्र जी,
    टिप्पणी के लिए आभारी हूं।
    जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
    हार्दिक धन्यवाद!

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  5. आधुनिक युग में भी रानी [इंदिरा गांधी] के सिक्के निकले ना :)

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  6. सिलसिलेवार जानकारी आपकी इस आलेख श्रृंखला दारा चल रही है । आभार...

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  7. ज्यों-ज्यों सामंतवाद बढता गया, स्त्रियों की अवस्था खराब होती गई। सिक्कों पर समानता वाली बात नई जानकारी थी। संक्षिप्त किन्तु विस्तार से आपने मूल्यांकन किया है।

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  8. सी एम प्रशाद जी,
    बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद !

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  9. सुशील बाकलीवाल जी,
    इस उत्साहवर्द्धन के लिए अत्यन्त आभारी हूं। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद !

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  10. मनोज कुमार जी,
    मेरे लेख को पसन्द करने और बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद!

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  11. जिस तरह संक्षिप्त किन्तु सिलसिलेवार आपने विस्तृत जानकारी दी इसके लिए आपका आभार.

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  12. मदन शर्मा जी,
    टिप्पणी के लिए आभारी हूं।
    जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
    हार्दिक धन्यवाद!
    मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए आभार... आपका स्वागत है।

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  13. शरद जी,
    आप के तीनो आलेख पढ़े हैं.बहुत ही बढ़िया जानकारी दे रहीं हैं.
    आप के ब्लॉग पर आ कर पता चलता है कि ब्लॉग पर कितना सार्थक लेखन हो रहा है आजकल.

    सराहनीय प्रयास

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  14. विशाल जी,
    आपने मेरे तीनों लेखों को सराहा...यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है.
    आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।

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  15. इस आलेख माला को पढ़कर ज्ञान वर्धन हो रहा है . आभार आपका .

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  16. आशीष जी,
    जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरे लेख पसन्द आ रहे हैं....
    आपको हार्दिक धन्यवाद!
    इसी तरह सम्वाद बनाएं रखें।

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  17. अभी तक की चारों कड़ियाँ ज्ञानवर्धक हैं.सम्पूर्ण अध्ययन से यही निष्कर्ष निकलता है -उत्तरोतर सभ्यता का विकास नारियों (महिलाओं)के लिए पिछडापन लाता गया.ऐसा धन-वैभव की बढ़ती मान्यता एवं फैलती शोषण मनोवृति के कारण ही हुआ है.इस अतीत को दृष्टांत नहीं बनाना चाहिए बल्कि सुधारात्मक दृष्टिकोण ले कर समतामूलक विकास की बात सामने आनी चाहिए.

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  18. रर मै आज न जाने क्या खोजने के लिये बैठा था और उस खोज को खोजते खोजते यहां आ गया सच कहुं कि नैट पर बडे नपे तुले शब्दो मे लो लिखा गया है ज्ञान का सागर है आप इसी तरह सेवा मे लगे रहेईश्व आपको शक्ति प्रदान करे

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  19. प० राजेश कुमार शर्मा जी,
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपको धन्यवाद...
    यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरे लेख पसन्द आए। आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
    मेरे ब्लॉग्स पर आपका सदा स्वागत है!

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  20. बहुत ही रोचक तथ्य

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  21. बहुत सारगर्भित जानकारी

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