पृष्ठ

Saturday, September 17, 2011

भारत का एकमात्र मेंढक मंदिर

- डॉ. शरद सिंह

     त्तर प्रदेश में लखनऊ से सीतापुर मार्ग पर लखीमपुर खीरी से लगभग 12 कि.मी. दूर ओएल कस्बा है. यहां भारत का एकमात्र मेंढक मंदिर स्थित है. लखीमपुर खीरी लखनऊ संभाग के अतंर्गत लखनऊ से उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह जनपद पश्चिम में शाहजहांनपुर तथा पीलीभीत, पूर्व में बहराईच, तथा दक्षिण में हरदोई जिले की सीमाओं को स्पर्श करता है. इसी जिले में दुधुवा राष्ट्रीय उद्यान भी है जिसे देखने प्रति वर्ष सैंकड़ों पर्यटक आते हैं. ये पर्यटक ओयल भी अवश्य जाते हैं. ओयल का जितना पर्यटन की दृष्टि से महत्व है उतना ही धार्मिक दृष्टि से भी महत्व है. लखीमपुर खीरी जिले में कुल छः कस्बे हैं जिनमें से एक है ओयल.  
         अतीत में ओयल कस्बा प्रसिद्ध तीर्थ नैमिषारण्य क्षेत्र का एक हिस्सा था. नैमिषारण्य और हस्तिनापुर मार्ग में पड़ने वाला कस्बा अपनी कला, संस्कृति तथा समृद्धि के लिए विख्यात था. ओयल शैव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र था. ओयल के शासक भगवान शिव के उपासक थे. ओयल कस्बे के मध्य में स्थित मेंढक मंदिर पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर अद्भुत है. 
ओयल का मेंढक मंदिर
                            
        मेंढक मंदिर देश में अपने ढंग का अकेला और अनोखा मंदिर है. मेंढक एक ऐसा उभयचर प्राणी है जो वर्षा होने की सूचना देता है. अतः इसे वृष्टि एवं अनावृष्टि से संबंध माना जाता है. यह माना जाता है कि राज्य को सूखे तथा बाढ़ की प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया गया. अतीत में यह कस्बा नैमिषारण्य क्षेत्रा का एक हिस्सा था. नैमिषारण्य वही प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है जहां दधीचि ने अपनी अस्थियां देवताओं को प्रदान की थीं. अतः यह सम्पूर्ण क्षेत्र प्राचीनकाल से धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्रियाकलापों का केन्द्र रहा है.
ओयल के मेंढक मंदिर का शिखर
    ओयल शैव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र था. और यहां के शासक भगवान शिव के उपासक थे. ओयल कस्बे के मध्य में स्थित मंडूक यंत्र पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर इस कस्बे की ऐतिहासिक गरिमा को प्रमाणित करता है. ग्यारहवीं शती के बाद से यह क्षेत्रा चाहमान शासकों के आधीन रहा. 19 वीं सदी के प्रारम्भ में चाहमान वंश के तत्कालीन यशस्वी राजा बख्श सिंह ने जन कल्याण की भावना से प्रेरित हो कर इस अद्भुत मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी. तंत्रवाद पर आधारित इस मंदिर की वास्तु संरचना अपनी विशेष शैली के कारण ध्यान आकृष्ट करती है.
      
मंदिर के आधार पर विशालकाय मेंढक-आकृति
               ओयल में विशालकाय मेंढक मंदिर प्राचीन तांत्रिक परम्परा का एक महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं. मेंढक मंदिर अड़तीस मीटर लम्बाई, पच्चीस मीटर चौड़ाई में निर्मित एक मेढक की पीठ पर बना हुआ है. पाषाण निर्मित मेंढक का मुख तथा अगले दो पैर उत्तर की दिशा में हैं. मेंढक का मुख 2 मीटर लम्बा, डेढ़ मीटर चौड़ा तथा 1 मीटर ऊंचा है.  इसके पीछे का भाग 2 मीटर लम्बा तथा 1.5 मीटर चौड़ा है. पिछले पैर दक्षिण दिशा में दिखाई हैं. मेंढक की उभरी हुई गोलाकार आंखें तथा मुख का भाग बड़ा जीवन्त प्रतीत होता है. मेंढक के शरीर का आगे का भाग उठा हुआ तथा पीछे का भाग दबा हुआ है जोकि वास्तविक मेंढक के बैठने की स्वाभविकमुद्रा है.                                  
       ग्यारहवीं सदी की तांत्रिक संरचनाओं में अष्टदल कमल का बहुत महत्व रहा है.  ओयल इस मंदिर ही अष्टदल कमल को विशेष महत्व दिया गया है. मंदिर का आधार भाग अष्टदल कमल के आकार का बना हुआ है. 
मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग
 मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर तथा दूसरा द्वार दक्षिण की ओर है. मंदिर में काले-स्लेटी पाषाण का भव्य शिवलिंग है. जो श्वेत संगमरमर की 1 मीटर उंचाई तथा 0.7 मीटर व्यास की दीर्घा में गर्भगृह के मध्य स्थित है. इस शिवलिंग को भी कमल के फूल पर अवस्थित किया गया है. इसके समीप उत्तर-पूर्व कोने पर श्वेत संगमरमर की निर्मित नंदी वाहन की प्रतिम है. मंदिर के अंदर से सुरंग मार्ग है. जो मंदिर के प्रांगण के बाहर पश्चिम की ओर खुलता है.यह आज भी प्रयोग में लाया जाता है. अनुमान है कि प्राचीन काल में इस सुरंग मार्ग से राज परिवार तथा विशिष्ट पुजारी गण आते-जाते रहे होंगे. मंदिर का विशाल प्रांगण में जिसके मध्य यह मंदिर निर्मित है लगभग 100 मीटर का वर्गाकार है. मंदिर का निर्माण वर्गाकार जगती के उपर किया गया है. मंदिर के उपर तक जाने के लिए चारो तरफ सीढ़ियां बनी हैं. सीढ़ियों द्वारा भक्त उस धरातल पर पहुंचता है जहां से उसे आठ कोणीय सतह के उपर जाने का मार्ग मिलता है. इस कोण के बाद अष्टदल कमल की अर्द्धवृत्ताकार पंखुड़ियों को पार कर तीन वृत्ताकार सीढ़ियों के बाद अष्टकोणीय धरातल है. यहां पर चतुष्कोणीय गर्भगृह है.
          मंदिर का निर्माण ईंटों और चूने के गारे से किया गया है. इसमें सबसे नीचे एक विशाल मेंढक का निर्माण किया गया है. उसके ऊपर पांच मीटर उंची जगती बनाई गई है. जिसके चारो तरफ पांच सीढ़ियां हैं. मंदिर की बाहरी दीवारों पर देवी-देवताओं, साधु-संतों और योगियों की विभिन्न मुद्राओं में प्लास्टर निर्मित मूर्तियां हैं. सबसे ऊपर मंदिर का गुम्बदाकार शिखर है. मंदिर के चारो कोनों पर चार अन्य छोटे मंदिर निर्मित किए गए हैं. ये मंदिर भी वास्तु संरचना में अष्टकोणीय हैं. किसी भी छोटे मंदिर में देव मूर्ति की स्थापना नहीं की गई है. मंदिर का भीतरी भाग दांतेदार मेहराबों, पद्म पंखुड़ियों , पुष्प पत्र अलंकरणों से चित्रांकित है. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में सहस्त्र कमल दलों से अलंकृत सफेद संगमरमर की दीर्घा है. मंदिर के चारो ओर लगभग 150 मीटर वर्गाकार में चहारदीवारी निर्मित है.
          मंदिर की दीवारों पर तथा चारो कोनों पर बने लघु मंदिरों की दीवारों पर शिव साधना में रत अनेक आकृतियां उत्कीर्ण हैं. इनमें खड्ग धारिणी देवी चामुण्डा, मोरनी पर आरूढ़ चार शीश वाले देवता तथा आत्म-बलि के दृश्य बने हुए हैं. चार सिर वाले देवता का चौथा सिर मुख्या सिर के ठीक ऊपर बनाया गया है. इनके ठीक पीछे एक अन्य देवता विराजमान हैं. आत्म-बलि का दृश्य अद्भुत है. इसमें एक स्त्री को करवट लेटे हुए एक पुरूष के शरीर पर बैठे हुए दिखाया गया है. वह स्त्री अपने दाएं हाथ में धारदार हथियार रखे हुए है तथा उसके बाएं हाथ में उसका कटा हुआ सिर है जिसका मुख खुला हुआ है. कटी हुई गरदन से रक्त की धार निकल कर खुले हुए मुख में गिर रही है. मूलतः यह स्व-रक्तपान का दृश्य है जो तांत्रिक अनुष्ठान की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है. उस स्त्री के दोनों पार्श्व में सेविकाएं खड़ी हुई हैं  जो इस तांत्रिक क्रिया की साक्षी एवं सहयोगिनी हैं.
मंदिर की बाहरी दीव
    जिन विशालकाय ताखों में तांत्रिक क्रियाओं वाली मूर्तियों को प्रदर्शित किया गया है वे बेल-बूटे के सुन्दर अंकनों से सुसज्जित हैं. मंदिर की भीतरी दीवारों को भी सुंदर बेल-बूटों से सजाया गया है.  मंदिर की जगती पर पूर्व की ओर लगभग 2 फुट व्यास का एक कुआं बना हुआ है. ऐसा प्रतीत होता है कि इस कुए का जल-स्तर भूतल के समानांतर है. मंदिर के उत्तर में 2 की.मी. लम्बा और 1 कि.मी. कुण्ड है जो संभवतः भक्तजन के स्नान के लिए बनाया गया होगा.
           यूं तो देश के अनेक स्थान पर तंत्रवाद से संबंधित मंदिर एवं प्रतिमाएं पाई जाती हैं जिनमें चौसठ योगिनियों के मंदिर प्रमुख हैं किन्तु मांडूक तंत्रपर आधारित यह मेंढक मंदिर अद्वितीय है.

47 comments:

  1. डा० शरद जी ,

    आप हमेशा अद्बुत और नयी जानकारी देती हैं ... इस मंदिर के बारे में पहली बार जाना .. विस्तृत जानकारी के लिए आभार

    ReplyDelete
  2. डा. शरद जी,
    भारत का एकमात्र मेंढक मंदिर के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाने में लिए किया गया प्रयास सराहनीय है |

    ReplyDelete
  3. आदरणीय डा० शरद जी
    नमस्कार !
    हमे तो पता ही नहीं था इसके बारे में
    ....मेंढक मंदिर के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए आभार !

    ReplyDelete
  4. बिलकुल नयी और रोचक जानकारी दी आपने।

    सादर

    ReplyDelete
  5. प्राचीन जानकारी का वर्णन रोचकता एवं कौतूहलता पूर्वक किया है। वैसे यह स्थान हमारे वर्तमान निवास से अधिक दूर नहीं है -100 कि मी के डायरे मे होगा। पर्यटन के लिहाज से ठीक है परंतु तांत्रिक धार्मिकता के लिहाज से मै देखना नहीं चाहूँगा।

    ReplyDelete
  6. अति रोचक जानकारी। भारत की विविधता आश्चर्यचकित करती है। जापान के धार्मिक स्थल में मेंढक/टोड की विशाल आकृति देखी थी और भारत में विभिन्न नन्दी। इस लिहाज़ से यह मन्दिर वाकई अनूठा है। ऊपर से यह आर्किटेक्चर चार सहायक मन्दिरों के साथ यह ताजमहल की शली से भी कुछ समानता दिखाता लग रहा है। इस प्रकार के अन्य आलेखों का उत्सुकता से इंतज़ार रहेगा।

    ReplyDelete
  7. भारतीय संस्कृति में पशु-पक्षी, जलचर-थलचर-उभयचर सभी के प्रति आदरभाव के प्रतीक स्वरूप अनेक मूर्तियाँ,मंदिर...कथानाक आदि हैं. आपकी खोजी दृष्टि को धन्यवाद !

    ReplyDelete
  8. वर्षा न होने पर मेंडकों का ब्याह कर पूजा अर्चना की बात तो सुनी थी, यह नई जानकारी के लिए आभार॥

    ReplyDelete
  9. रोचक. ''स्व-रक्तपान का दृश्य'' संभवतः छिन्‍नमस्‍ता.

    ReplyDelete
  10. अद्भुत!
    एक तो इस मंदिर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जानकारी में इज़ाफ़ा हुआ।
    दूजे इतनी विस्तृत जानकारी जिसमें न सिर्फ़ ऐतिहासिक तथ्यों को बताया गया है बल्कि स्थापत्य कला पर विस्तृत दृष्टि भी डाली गई है। इस तरह के आलेख ब्लॉगजगत के लिए अमूल्य हैं।

    ReplyDelete
  11. आदरणीय सुश्री शरदजी,
    बेहतरीन जानकारी का साधुवाद.. मंदिरों पर इस लेखन ने हमारी सजीव पत्रकारिता में विषयों की कतार लगा दी है.. आपसे समय समय पर सहायता लेनी होगी.. रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद

    ReplyDelete
  12. ✿संगीता स्वरुप जी,
    ❖विनीत नागपाल जी,
    ✿संजय भास्कर जी,
    ❖यशवन्त माथुर जी,
    ✿विजय माथुर जी,
    ❖अनुराग शर्मा जी,
    ✿कौशलेन्द्र जी,
    ❖चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी,
    ✿राहुल सिंह जी,
    ❖संजय जी,
    ✿मनोज कुमार जी,
    ❖आक्रोश जी,
    ✿अरूण साथी जी,

    मेरे लेख को पसन्द करने और बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार....

    इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें.

    ReplyDelete
  13. मेंढक मंदिर के बारे में बड़ी दिलचस्प जानकारी मिली. आभार.

    ReplyDelete
  14. P.N. Subramanian ji,
    मेरे लेख को पसन्द करने और बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार....

    ReplyDelete
  15. मेढक मन्दिर के बारे में महत्तवपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आभार

    ReplyDelete
  16. डॉ. मिस शरद सिंह जी आपकी मेहनत और उपलब्धियों के मद्देनज़र, अयोध्या के निकट स्थित हमारी संस्था, आचार्य नरेन्द्र देव किसान पी. जी. कॉलेज, बभनान, गोण्डा, उ. प्र., के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग की ओर से आयोजित तथा यू.जी.सी. द्वारा संचालित ‘युग-युगीन नारी विमर्श’ विषय को केन्द्र में रखकर होने वाली राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभागाध्यक्ष, प्रा. इति. एवं पुरातत्व, अॅसोशिएट प्रो. डॉ. सुशील कुमार शुक्ल तथा आयोजन समिति ने निर्णय लिया है कि आप को इस संगोष्ठी में आपको विशिष्ट अभ्यागत (रिसोर्स पर्शन) के रूप में आमन्त्रित किया जाय। अतः आप इस आमन्त्रण को स्वीकार कर अपनी सहमति ईमेल- cm07589@gmail.com पर अविलम्ब देने की कृपा करें जिससे आपके आने से सम्बन्धित औपचारिकताओं को पूरा किया जा सके। अपना फोन नं. भी मेल में लिख देंगी। जिससे बात हो सके। अथवा 09532871044 पर बात भी करके सूचित कर दें तो अति कृपा होगी। विश्वास है कि आप इस आमन्त्रण को अस्वीकार नहीं करेंगी। आपके आने-जाने तथा रहने का पूरा व्यय महाविद्यालय करेगा। सादर-
    चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
    आ. न. दे. किसान पी. जी. कॉलेज,
    बभनान, गोण्डा, उ. प्र.
    फोन नं.- 09532871044
    email- cm07589gmail.com

    ReplyDelete
  17. यह संगोष्ठी इसी 15-16 अक्टूबर को होनी है। अतः आप तुरन्त सूचित करने की कृपा करें

    ReplyDelete
  18. चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी,
    आचार्य नरेन्द्र देव किसान पी. जी. कॉलेज, बभनान, गोण्डा, उ. प्र., के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग की ओर से आपके द्वारा आमंत्रण हेतु अनुगृहीत हूं.

    दुख है कि उक्त तिथियों में दिल्ली में एक कॉन्फ्रेंस में शामिल होना है, जिसकी स्वीकृति मैं आयोजनकर्ताओं को पूर्व में ही दे चुकी हूं. अतः विवशता है. आशा हैकि आप मेरी इस विवशता को अन्यथा नहीं लेंगे.

    आपकी सदाशयता के प्रति पुनः आभार प्रकट करती हूं तथा प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग के इस महत्वपूर्ण आयोजन में उपस्थित हो पाने में असमर्थता के लिए क्षमाप्रार्थिनी हूं.

    आशा हैकि इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखेंगे.

    ReplyDelete
  19. बढिया जानकारी।
    शुक्रिया आपका।
    पहली बार आपके इस ब्‍लाग में आया... ऐसा लगा अब तक काफी कुछ मैंने मिस कर दिया..... अब कोई पोस्‍ट नहीं छूटेगी यह तय है। फालोवर्स में शामिल हो गया.... हर पोस्‍ट मिल ही जाएगी।

    ReplyDelete
  20. बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी मिली! धन्यवाद!

    ReplyDelete
  21. मेढक मंदिर के बारे में पहली बार जाना .
    इधर देर से आ पाई -यह अद्भुत जानकारी देने के लिये आपका आभार .
    तंत्र-शास्त्र की ऐसी बहुत सी मान्यतायें ,और उनका उपयोग आज कोई नहीं जानता .विस्तार से जानने की इच्छा होती है-शायद कहीं कोई ग्रंथ हो जिसमें इसकी चर्चा हो .
    पुनःआभार !

    ReplyDelete
  22. अतुल जी,
    मेरे लेख को पसन्द करने और बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार....

    ReplyDelete
  23. उर्मि जी,
    यह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया। आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

    ReplyDelete
  24. प्रतिभा सक्सेना जी,
    मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार ! मैं प्रयास करुंगी कि अपनी अगली पोस्ट में भारतीय इतिहास में तंत्रवाद पर जानकारी दे सकूं.
    पुनः आभार.

    ReplyDelete
  25. पर्यावरण प्रहरी मेंढक आज उपेक्षित है .मेंढक की टांगों का निर्यात होता है .'दादुर अब वक्ता हुए कोयल साधो मौन 'टर टर मेंढक सा टर्राना,बिना बात के शोर मचाना ,बुरी बात है गाली देना ,तीखी भाषा में कुछ कहना ,इसीलिए तुम जितना बोलो ,कम बोलो और मीठा बोलो .कांव कांव करता है कौवा ,लगता है कानों को हौवा ,चुगली करती मैना रानी ,दूर दूर तक है बदनामी ,इसीलिए तुम जितना बोलो ,कम बोलो और मीठा बोलो .पर्तिकों से आगे चला गया है स्तुत्य पक्षी जगत .बहुत अच्छा आलेख इतिहास के झरोखे से ,.ताज़ी हवा सा .

    ReplyDelete
  26. अति उत्तम रचना,

    ReplyDelete
  27. veerubhai ji,
    Rahul ji,

    Hearty Thanks for your comment...
    You are always welcome in my blog.

    ReplyDelete
  28. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  29. आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

    ReplyDelete
  30. I know i am so late to read this post. but thank you for this excellent information. I hope to get a lot of good information like this here

    A few snaps dont belong to India, there's much more to India than this...!!!. take a look here Yeh Mera India

    ReplyDelete
  31. precious information about our mother India .....thanks a lot mem

    ReplyDelete
  32. पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
    ***************************************************

    "आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"

    ReplyDelete
  33. .भारत के एकमात्र मेंढक मंदिर के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए आपका धन्यवाद !

    ReplyDelete
  34. Aaderneeya dr sharad jee...main to seetapur jaata rahta hoon..nemisharnya ke bhee darshan kiye..lekin is adbhut tathya kee jaankari mujhe nahi thee..aaderniy ghafil jee ne aapko babhnan aane ka nimantran diya tha ..aap delhi ki conference ki bajah se na aa sakt..nahi to aapse mulakat ho jaatee..behatarin jaankari ke liye punah dhanywas

    ReplyDelete
  35. spreading alot of good information about our beloved nation INDIA..wonderful..God Guard you.. best of luck

    ReplyDelete
  36. आप सभी का हार्दिक आभार...

    ReplyDelete
  37. THANKS MAM TO PROVIDE THIS INFORMATION, BCOZ I BELONGS TO LAKHIMPUR KHERI BUT I WAS NOT AWARE THIS FAMOUS PLACE.


    Regards
    sourabh Kumar Singh
    Mohammadi Kheri
    09450175425

    ReplyDelete
  38. आज आपने एक विशेष जानकारी दी है |मैंने यह मंदिर नहीं देखा है जब कि उधर जाना तो होता रहता है |सुन्दर लेख
    आशा

    ReplyDelete
  39. वाह...
    बढ़िया जानकारी....
    कुछ अनोखी सी...
    सादर.

    ReplyDelete
  40. आज 20/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  41. मेंढक मंदिर के बारे में बड़ी दिलचस्प जानकारी मिली
    .... आभार.

    ReplyDelete
  42. Very interesting temple. Wasn't aware of it.
    Thanks for sharing.

    ReplyDelete