पृष्ठ

Tuesday, January 21, 2020

खजुराहो की प्रतिमाओं में नृत्यकला - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh, Author, Philosopher and Historian
खजुराहो की प्रतिमाओं में नृत्यकला 

- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह     


नृत्य मानव की आदिम अवस्था से ही उल्लास का निदर्शक रहा है। किन्तु सभ्यता के विकास के साथ-साथ इस अनियंत्रित उद्वेग को कला की सीमाओं में बांध कर उसे विशिष्ट स्तर प्रदान किया गया। भारत में नृत्य को प्राचीन काल से ही ‘कला’ का पद प्राप्त है। भरत मुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में नृत्य का विशद विवेचन मिलता है। इसके भी पूर्व ऋग्वेद में नृत्य का उल्लेख अनेक स्थानों पर हुआ है। ऋग्वैदिक काल में समन नामक मेले में तरूण और तरूणियां दोनों मिल कर नृत्य करते थे। गंधर्वों और अप्सराओं की वृत्ति नृत्य-गान ही थी। शुंगकालीन उत्खचनों में नृत्य शैलियों पर प्रकाश पड़ता है। मंदिर वास्तु के अलंकरणों में खजुराहो की मंदिर भित्तियों नृत्य की विविध भावभंगिमाओं से परिपूर्ण हैं। देवदासी प्रथा ने मंदिरों को नृत्य, गायन और वादन से जोड़े रखा।
दक्षिण भारत के अनेक मंदिरों में पट्टिकाओं पर नृत्य की मुद्राओं, भंगिमाओं और गतियों का बारीक, विस्तृत और गहन चित्रण है जिसने शास्त्राीय नृत्य परंपरा को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय संस्कृति एवं पौराणिक ग्रंथों में शिव को महादेव ही नहीं, नटराज भी कहा गया है। उनके ताण्डव नृत्य की विशिष्ट मुद्रा युक्त मूर्तियां दक्षिण भारत के अनेक मंदिरों में मिलती हैं। शिव को नटेश्वर भी कहा गया है। उनके डमरु से ताल तथा नृत्य से लय का उद्भव माना जाता है। उनके रूद्र नृत्य को ताण्डव और कोमल नृत्य को लास्य के रूप में वर्णित किया गया है। जबकि वैष्णव अवतारों में कृष्ण को नटनागर कहा गया है तथा उन्हें रास का प्रवर्तक माना गया है। 
नृत्य का विविध और विस्तृत रूप खजुराहो की मूर्तियों में प्रदर्शित है।
कालिदास के समय नृत्यकला का बहुत विकास हो चुका था । ‘मालविकाग्निमित्र’ के प्रथम एवं द्वितीय अंकों में गीत और नृत्य के सिद्धांतों का पर्याप्त विवेचन मिलता है। इस ग्रंथ में दो संगीताचार्यों के ज्ञान संघर्ष का निर्णय करती हुई परिव्राजिका नृत्य और नाट्य को प्रयोग प्रधान ठहराती है - ‘प्रयोग 
प्रधान हि नाट्यशास्त्रां। इस ग्रंथ में नृत्यों को पंचांगीय कहा गया है - ‘पंचांगादिकर्मोभिनय मुपदिश्र्व’।
कालिदास ने ‘छालिक’ अथवा ‘चलित’ नामक नृत्य का उल्लेख भी किया है। टीकाकार काटवयेम ने छलित अथवा छालिक नृत्य के बारे में टीका लिखी है कि इस नृत्य में अन्य पात्रा का अभिनय करता हुआ नर्तक अपने भावों को अभिव्यक्त करता है -
तद्एतचलितं नाम साक्षात् यत् अभिनीयते। व्यपदिश्र्व परावत्तं स्वामिप्रायं प्रकाशकम्।
नृत्य की यही परिष्कृत परम्परा खजुराहो की मंदिर भित्तियों पर उत्खचित की गई है। खजुराहो मूर्तिशिल्प में नृत्य मुद्राओं, नर्तकियों एवं गंधर्वों को बड़ी कलात्मकता के साथ उतारा गया है। कुछ नर्तकियों को इतनी कठिन मुद्रा में दिखाया गया है कि उनकी नृत्य मुद्राएं असंभावित सी जान पड़ती हैं। लक्ष्मण मंदिर के सामने बायीं ओर स्थित लघु मंदिर में एक नर्तकी को दर्शकों की ओर पीठ किए हुए नृत्य मुद्रा में दिखाया गया है किन्तु नत्र्तकी ने अपनी कमर को इस तरह मोड़ रखा है कि उसका मुख तथा वक्ष दर्शकों की ओर हैं। प्रथम दृष्टि में ऐसा प्रतीत होता है, जैसे उसकी अधोदेह पर देह का ऊपरी भाग अलग से घुमाकर जोड़ दिया गया हो, किन्तु दूसरी ही दृष्टि में यह कठिन नृत्य मुद्रा स्पष्ट हो जाती है।
इसी प्रकार की मुद्रा विश्वनाथ मंदिर की बायीं आंतरिक प्रदक्षिणा भित्ति पर तथा कंदिरया महादेव मंदिर की बायीं एवं दाहिनी बहिर्भित्ति पर हैं जिसमें नर्तकी ने अपनी देह के ऊपरी हिस्से को कमर से मोड़ कर दर्शकों की ओर कर रखा है।
लक्ष्मण मंदिर तथा कंदरिया महादेव मंदिर में एक अन्य नृत्यमुद्रा प्रदर्शित है जिसे ‘त्रिभंग’ कहते हैं। इसमें नत्र्तकी के दोनों हाथों की उंगलियां उसकी देह के पृष्ठभाग में जाकर आपस में गुंथी हुई हैं।
एक अन्य मुद्रा में नर्तकी ने अपने दायें पैर को मोड़कर दायें हाथ से पकड़ रखा है तथा उसका चेहरा बायें कंधे की ओर झुका हुआ है। नर्तकियां प्रायः अधोवस्त्र के रूप में चूड़ीदार पाजामा जैसा कसा हुआ वस्त्र पहनती थी। यद्यपि उनका वक्ष स्थल अनावृत रहता था जो कि आभूषणों से सुसज्जित रहता था।
खजुराहो में नटराज की मात्र दो प्रतिमाएँ हैं। प्रथम, दूलादेव मंदिर भित्ति पर है जिसमें नटराज के तीन हाथों में क्रमशः त्रिशूल, डमरू और खप्पर (अथवा कपाल) प्रदर्शित है तथा चैथा हाथ कटि पर स्थित है। दूसरी प्रतिमा संग्रहालय में स्थित है जिसमें वरद्, त्रिशूल, खड्ग, डमरू, खेटक, खट्वांग खप्पर प्रदर्शित हैं। भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में नटराज की नृत्यमुद्राओं की विस्तृत व्याख्या मिलती है। 
(पुस्तक  - "खजुराहो की मूर्तिकला के सौंदर्यात्मक तत्व" से)
--------------------------------------------------------------
खजुराहो की मूर्तिकला के सौंदर्यात्मक तत्व Elements of Beauty in the Sculptures of Khajuraho - By Dr (Miss) Sharad Singh

पुस्तक  - खजुराहो की मूर्तिकला के सौंदर्यात्मक तत्व
लेखिका - डाॅ. शरद सिंह
प्रकाशक - विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
Elements of Beauty in the Sculptures of Khajuraho - Book of Dr (Miss) Sharad Singh

4 comments:

  1. हार्दिक धन्यवाद 🙏

    ReplyDelete
  2. खजुराहो के बारे में आपका लेख सरलता से प्राचीन धरोहर के बारे में विस्तृत जानकारी देता है..
    सादर प्रणाम

    ReplyDelete
  3. जीवन की गति-सुगति ऋतु , नर्तन में नित्य निवसे !
    जीवन-प्रवृत्ति , प्रकटन , नर्तन की राह निकसे !!

    ReplyDelete