- डॉ. शरद सिंह
कालिंजर बुंदेलखंड का ऐतिहासिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। यहां का किला भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। 9वीं से 15वीं शताब्दी तक यहां चन्देल शासकों का शासन था। चन्देल राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक,शेर शाह सूरी और हुमांयू ने आक्रमण किए लेकिन जीतने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बावजूद मुगल कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: 1569 में अकबर ने यह किला जीता और अपने नवरत्नों में एक बीरबल को उपहारस्वरूप प्रदान किया। बीरबल क बाद यह किला बुंदेल राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। छत्रसाल के बाद किले पर पन्ना के हरदेव शाह
का अधिकार हो गया। 1812 में यह किला अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया। एक
समय कालिंजर चारों ओर से ऊंची दीवार से घिरा हुआ था और इसमें चार प्रवेश
द्वार थे। वर्तमान में कामता द्वार, पन्ना द्वार और रीवा द्वार नामक तीन
प्रवेश द्वार ही शेष बचे हैं।
विंध्याचल की पहाड़ी पर 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह किला इतिहास के उतार-चढ़ावों का प्रत्यक्ष गवाह है। किले में आलमगीर दरवाजा, गणेश द्वार, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, हनुमान द्वार, लाल दरवाजा और बारा दरवाजा नामक सात द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। किले के भीतर राजा महल और रानी महल नामक शानदार महल बने हुए हैं। महल में सीता सेज नामक एक छोटी गुफा है जहां एक पत्थर का पलंग और तकिया रखा हुआ है जो एक जमाने में एकांतवास के तौर पर इस्तेमाल की जाती थी। किले में जलाशय भी है जिसे पाताल गंगा नाम से जाना जाता है। साथ ही यहां के पांडु कुंड में चट्टानों से निरंतर पानी टपकता रहता है। किले के बुड्ढ-बुड्ढी ताल के जल को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।
शिवपुराण के अनुसार समुद्र मंथन से गरल निकलने पर शिव ने उसे अपने गले में धारण कर लिया। जिससे गले में तेज जलन होने लगी। तब भगवान शिव शीतलता की तलाश में आकाशमार्ग से चल पड़े। आकाशमार्ग से जाते समय उन्हें कालंजर पर्वत पर शीतलता का अनुभव हुआ और वे वहीं ठहर गए। वहां उस समय देवी काली का स्थान था। कालंजर में ही उन्होंने देवी काली के साथ विवाह किया जो बाद में कामाख्या चली गईं।
Mandapa |
शेरशाह सूरी ने जब कालिंजर पर आक्रमण किया तो उसे महीनों घेरा डाले रहना पड़ा। परेशान हो कर उसने खुद आगे बढ़ कर गोले दगवाने शुरू किए। एक गोला दुर्ग की दीवार से टकरा कर बारूद के ढेर पर गिरा जिससे शेरशाह बुरी तरह जख्मी हो गया। ये जख्म ही उसकी मौत का कारण बने और कालिंजर अजेय रहा।
यहां के मुख्य आकर्षणों में नीलकंठ मंदिर है। इसे चंदेल शासक परमादित्य देव ने बनवाया था। मंदिर में 18 भुजा वाली विशालकाय प्रतिमा के अलावा रखा शिवलिंग नीले पत्थर का है। मंदिर के रास्ते पर भगवान शिव, काल भैरव, गणेश और हनुमान की प्रतिमाएं पत्थरों पर उकेरी गयीं हैं।
इसके अलावा सीता सेज, पाताल गंगा, पांडव कुंड, बुढ्डा-बुढ्डी ताल, भगवान सेज, भैरव कुंड, मृगधार, कोटितीर्थ व बलखंडेश्वर, चौबे महल, जुझौतिया बस्ती, शाही मस्जिद, मूर्ति संग्रहालय, वाऊचोप मकबरा, रामकटोरा ताल, मजार ताल, राठौर महल, रनिवास, ठा. मतोला सिंह संग्रहालय, बेलाताल, सगरा बांध, शेरशाह शूरी का मकबरा, हुमायूं की छावनी आदि हैं।
Banke Bihari Temple |