- डॉ. शरद सिंह
खजुराहो के चितेरों ने जहां नृत्य तथा वादन को उकेरा, वहीं लेखन तथा पठन को भी स्थान दिया है . खजुराहो की मूर्तियों में अत्यंत कलात्मक ढंग से लेखन एवं पठन क्रिया को ढाला गया है। इनसे पता चलता है कि चंदेल काल में स्त्री-शिक्षा पर ध्यान दिया जाता था. कम से कम मध्यम और उच्च वर्ग की स्त्रियां शिक्षित होती थीं.
विश्वनाथ मंदिर में एक नारी को कागजों के पुलन्दे सहित दिखाया गया है. वह सामने खड़े पुरुष को कुछ समझा रही है. इसी मंदिर के अन्य दृश्य में एक नारी पुस्तक रख कर गुरु से पढ़ती हुई दिखाई गई है. समस्त ललित कलाओं की शिक्षा गुरू से लिए जाने की परम्परा कला के उद्भव से ही चली आ रही है.
लेखन से संबंधित अनेक प्रतिमाएं खजुराहो में विद्यमान हैं. किसी में पत्र लिखती हुई नारी दिखाई गई है तो किसी में स्वाभाविक उत्सुकता का भाव लिए हुए पत्र पढ़ती हुई नारी अंकित है. एक से अधिक कागजों को रखे हुये प्रसन्न चित्त नारी की प्रतिमा भी है. जो या तो पत्र पढ़ रही है अथवा किसी नृत्य-नाट्य की पटकथा को पढ़ कर प्रसन्न हो रही है.जबकि कंदरिया महादेव मंदिर में पत्रा को देख-पढ़ कर मधुरता से मुस्कराती हुई नारी उत्खचित है. पत्र पढ़कर चिन्तन में डूबी हुई नारी , उदासी से ग्रस्त , आंसू पोंछती हुई , आंखें बंद किए अथवा सप्रयास पत्र देखती हुई नारी का अत्यंत भावपूर्ण तथा कलात्मक अंकन है. एक नारी बायां हाथ अपने वक्ष पर रखी और दायें हाथ में पत्र रखी हुई अंकित है. मानों वह पत्र पढ़ने के लिए अपना हाथ अपने वक्ष के मध्य रखी हुई हो. एक अन्य नारी दायें हाथ में कलम तथा बायें हाथ में पुस्तक थामी हुई दर्शाई गई है. मूर्तियों में कला की प्रचुरता को ध्यान में रखते हुए यह माना जा सकता है कि किसी कला-पुस्तक का अध्ययन-मनन कर रही है.
लेखन से संबंधित अनेक प्रतिमाएं खजुराहो में विद्यमान हैं. किसी में पत्र लिखती हुई नारी दिखाई गई है तो किसी में स्वाभाविक उत्सुकता का भाव लिए हुए पत्र पढ़ती हुई नारी अंकित है. एक से अधिक कागजों को रखे हुये प्रसन्न चित्त नारी की प्रतिमा भी है. जो या तो पत्र पढ़ रही है अथवा किसी नृत्य-नाट्य की पटकथा को पढ़ कर प्रसन्न हो रही है.जबकि कंदरिया महादेव मंदिर में पत्रा को देख-पढ़ कर मधुरता से मुस्कराती हुई नारी उत्खचित है. पत्र पढ़कर चिन्तन में डूबी हुई नारी , उदासी से ग्रस्त , आंसू पोंछती हुई , आंखें बंद किए अथवा सप्रयास पत्र देखती हुई नारी का अत्यंत भावपूर्ण तथा कलात्मक अंकन है. एक नारी बायां हाथ अपने वक्ष पर रखी और दायें हाथ में पत्र रखी हुई अंकित है. मानों वह पत्र पढ़ने के लिए अपना हाथ अपने वक्ष के मध्य रखी हुई हो. एक अन्य नारी दायें हाथ में कलम तथा बायें हाथ में पुस्तक थामी हुई दर्शाई गई है. मूर्तियों में कला की प्रचुरता को ध्यान में रखते हुए यह माना जा सकता है कि किसी कला-पुस्तक का अध्ययन-मनन कर रही है.
अपने बायें हाथ में पत्र तथा दायें हाथ में कलम पकड़कर पत्र लिखती हुई नारी प्रतिमा का एक से अधिक मंदिरों में सुन्दर अंकन है. इस मुद्रा में वह सोचती हुई दर्शाई गई है कि पत्र में क्या लिखना है ? या फिर वह कविता की कोई पंक्ति लिखने जा रही हो. इसी विचारपूर्ण मुद्रा में एक अन्य स्त्री को पत्रा के विषय पर आंख मूंद कर चिन्तन करते हुए दिखाया गया है.
दूलादेव मंदिर में एक नारी को दायें हाथ में लेखन के लिए कागजों का पुलन्दा थामें हुए दिखाया गया है. वह बायें हाथ में कलम पकड़कर उसे अपने होठों के मध्य दबा कर विचार करती हुई अंकित है. यह मुद्रा किसी नृत्य मुद्रा के समान आकर्षक है. इस प्रकार मूर्तिकला में भावमुद्राओं का कलात्मक प्रदर्शन अद्वितीय है.
दूलादेव मंदिर में एक नारी को दायें हाथ में लेखन के लिए कागजों का पुलन्दा थामें हुए दिखाया गया है. वह बायें हाथ में कलम पकड़कर उसे अपने होठों के मध्य दबा कर विचार करती हुई अंकित है. यह मुद्रा किसी नृत्य मुद्रा के समान आकर्षक है. इस प्रकार मूर्तिकला में भावमुद्राओं का कलात्मक प्रदर्शन अद्वितीय है.
खजुराहो मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई मिथुन मूर्तियों के लिए विख्यात है किन्तु और भी बहुत कुछ है मंदिरों की दीवारों पर, इसे मूर्ति-लिपि कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इन मूर्तियों के जरिए चंदेलों ने अपने समय को पूरी समग्रता के साथ दर्ज़ कर के भविष्य के लिए एक धरोहर के रूप में रख छोड़ा है । इस मूर्ति-लिपि को पढ़ने के लिए आवश्यकता है तो मात्र उस दृष्टि की जो खजुराहो को लेकर काम-संवेगों के पूर्वाग्रह से मुक्त हो। क्योंकि इस मूर्ति-लिपि में शिक्षा संबंधी ज्ञान भी मौजूद है। स्त्री-शिक्षा को प्रदर्शित करती ये प्रतिमाएं तत्कालीन स्त्रियों की बौद्धिक क्षमता को भी रेखांकित करती हैं.
आपने बिल्कुल तथ्यपरक बात कही।
ReplyDeleteखजुराहो कता यह पक्ष बहुत कम सामने लाया गया है।
ReplyDeleteसुंदर आलेख...
ReplyDeleteसादर।
खजुराहो की मूर्तियों पर आपकी दृष्टि प्रसंसनीय है. बहुत ही सटीक विश्लेषण कर एक नए पहलू को आपने उजागर किया है. बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही रोचक जानकारी!
ReplyDeleteसादर
खजुराहो के एक और स्वरूप से परिचित कराने के लिये धन्यवाद! लगता है अब खजुराहो का कार्यक्रम बनाना ही पड़ेगा...:)
ReplyDeleteसार्थक लेख, खजुराहो के मूर्ति शिल्प के एक अन्य पहलु से परिचित कराने के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लेख ..खजुराहो देखते वक्त ये सवाल जहन में था आज इसका जवाब मिल गया धन्यवाद !
ReplyDeleteये हमारे लिए अमूल्य धरोहर है.
ReplyDeleteसार्थक आलेख.
सादर
बहुत ही बढ़िया जानकारी मिली ....वर्ना अब तक तो खाजुराव का एक ही पक्ष ज्ञात था .....आभार !!!
ReplyDeleteनारी शिक्षा की ऐतिहासिकता के बारे में ये तथ्य जानकार अच्छा लगा.. सुंदर आलेख शरद जी..!!
ReplyDeleteइस मूर्ति-लिपि को पढ़ने के लिए आवश्यकता है तो मात्र उस दृष्टि की जो खजुराहो को लेकर काम-संवेगों के पूर्वाग्रह से मुक्त हो।
ReplyDeletebahut sundar , badhai shard singh ji
मेरे लेख को पसन्द करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार !
ReplyDeleteआपने इस लेख में एक नए दृष्टिकोण से व्याख्या की है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआदरणीय शरद जी , सुन्दर प्रस्तुति.. किंतु नारी के शिक्षण, उत्थान को देखने का नज़रिया मौजूद नही है.. आपके जानकारी भरे लेख से लगता है की कोई तो है जो शब्दों और चित्रों के बीच सार्थक द्रश्तिकोन ढूंडता है.. बधाई
ReplyDeleteआदरणीया शरद जी, नारी शिक्षा की दृष्टि से निश्चित ही आपका आलेख बहुत ही उच्चस्तर
ReplyDeleteका है। किन्तु खजुराहों मन्दिर में नारी को जिस फूहड़ रूप में प्रस्तुत किया गया हैं, मैं उसका
समर्थन कभी नहं कर सकता। जिसे हम सपरिवार नहीं देख सकते। मेरी दृष्टि में ये मंदिर
सामंतवाद का प्रतीक हैं। इस तरह के दश्यों का पर्दे के बाहर होना अशलीलता की श्रेणी में आता है।
khajuraho par aapki jankari ne mujhe punah prachin bhartiy kala ki or pahuncha diya hai , mai bhi iss par kaam kar chuki hu
ReplyDeleteखजुराहो के बारे में बहुत कुछ पहली बार पता चला
ReplyDeleteशुभकामनायें डॉ शरद !
sansar ki sabse ascharjanak bastu khajraho ka mandir or tajmahel taj mahel to log ek bar bana bhi sakte kai par dusra khajuraho mandir nahi ban sakta khajuraho ka mandir dekh ker lagta kai ki hamare purwaj us jamane mai kitne durdarsi the
ReplyDeleteभारतीय इतिहास का दर्पण : पठनीय एवं प्रशंसनीय:
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाये
संजय पलसुले