खजुराहो की मंदिर भित्तियों पर अंकित मूर्तियों में स्पष्ट होता है कि उस काल में दो प्रकार के गले के आभूषण पहने जाते थे-(अ) गुलूबंद (नेकलेस) (ब) हार।
(अ) गुलूबंद (नेकलेस) - गुलूबंद गले के चारों ओर अर्ध चन्द्राकार आभूषण है, जिसमें पंखुड़ी की आकृतियां, आम्र की आकृतियां बनी रहती थी। बीच की आकृति बड़ी होती थी। तथा उसके दोनों ओर ये आकृतियां छोटी होती चली जाती थी। इनमें तीर की आकृति जैसी तिकौनी अथवा चतुष्परणीय आकृति एक चौकोर टुकड़े में बनी होती थी।
(ब) हार - यह वक्ष स्थल से होता हुआ नीवि (नाभि) तक आया हुआ होता था। यह इकहरी अथवा तीन लड़ी का भी होता था। वक्ष तक आये हुये हार में चौकोर लाकेट होता था, जो वक्ष के ठीक ऊपर आता था।
संग्रहालय में रखी एक युगल मूर्ति में उत्कीर्ण गुलूबंद सपाट है। जिसके बीच में उत्खचन है। इसमें तीन लड़ी की माला भी अंकित है। गुलुबंद से निकला हुआ एक लंबा पतला हार पेट पर आया हुआ है।
(स) पुरूषों का गले के आभूषण - महिलाओं के गुलुबंद तथा हार के समान पुरूषों के गले के आभूषण में भी पंखुरी, कलियां, आम्र, घंटिका अथवा चौकोर आकृति बनी होती थी। इनमें इकहरी दोहरी और तिहरी लड़ भी पायी जाती थी। पुरूष वर्ग हंसुली भी पहनता था।
(अ) गुलूबंद (नेकलेस) - गुलूबंद गले के चारों ओर अर्ध चन्द्राकार आभूषण है, जिसमें पंखुड़ी की आकृतियां, आम्र की आकृतियां बनी रहती थी। बीच की आकृति बड़ी होती थी। तथा उसके दोनों ओर ये आकृतियां छोटी होती चली जाती थी। इनमें तीर की आकृति जैसी तिकौनी अथवा चतुष्परणीय आकृति एक चौकोर टुकड़े में बनी होती थी।
(ब) हार - यह वक्ष स्थल से होता हुआ नीवि (नाभि) तक आया हुआ होता था। यह इकहरी अथवा तीन लड़ी का भी होता था। वक्ष तक आये हुये हार में चौकोर लाकेट होता था, जो वक्ष के ठीक ऊपर आता था।
संग्रहालय में रखी एक युगल मूर्ति में उत्कीर्ण गुलूबंद सपाट है। जिसके बीच में उत्खचन है। इसमें तीन लड़ी की माला भी अंकित है। गुलुबंद से निकला हुआ एक लंबा पतला हार पेट पर आया हुआ है।
(स) पुरूषों का गले के आभूषण - महिलाओं के गुलुबंद तथा हार के समान पुरूषों के गले के आभूषण में भी पंखुरी, कलियां, आम्र, घंटिका अथवा चौकोर आकृति बनी होती थी। इनमें इकहरी दोहरी और तिहरी लड़ भी पायी जाती थी। पुरूष वर्ग हंसुली भी पहनता था।
अच्छा होता अगर हार की चित्र ज़ूम कर के दर्शाया होता.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी.
अनामिका जी, आपका सुझाव अच्छा है। हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteaapka yah blog meri ruchi ke mutabik hai ..bahut samay se is vishay par kuchh achha dhoondh rahi thi.ab shayad mila hai..aaram se padhne aaungi kabhi.
ReplyDeletemere blog par aapke sundar shabdon ka bahut dhanyavaad.
आपका सदा स्वागत है शिखा वार्ष्णेय जी.....
ReplyDeleteबहुत ही सूक्ष्म अन्वीक्षण है शरद जी का .शोधपरक पोस्ट ,पारखी दृष्टि ,बधाई !
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