- डॉ. शरद सिंह
कृष्ण के साथ गोपियों एवं भक्त रानियों द्वारा होली खेलने के प्रसंग अनेक ग्रंथों में मिलते हैं जबकि श्री राम को सदा मर्यादा पुरुषोत्तम माना जाने के कारण उनके साथ होली खेले जाने के प्रसंग नगण्य प्राय हैं। किन्तु बुन्देलखण्ड की ऐतिहासिक स्थली ओरछा में एक रानी हुई जिसका जीवन श्रीराम की भक्ति में डूबा हुआ था। उस रानी का नाम था कंचन कुंवरी।
रानी कंचन कुंवरी ओरछा के राजा महाराज सुजान सिंह की पत्नी थी। वह बाल्यावस्था से ही श्रीराम की अनन्य उपासिका थी। विवाह के बाद ओरछा आने पर भी उसकी राम-भक्ति में कोई कमी नहीं आई। अपने राममय जीवन में वह अपनी कल्पनाओं में भला होली खेलने राम के पास नहीं जाती तो और कहां जाती ?
रसखान, पद्माकर आदि कवियों ने श्रीकृष्ण और गोपियों के परस्पर होली खेलने का जी भर कर वर्णन किया है किन्तु रानी कंचन कुंवरी ने श्रीराम और सीता के साथ होली खेलने का वर्णन करते हुए कविताएं लिखीं। ये पंक्तियां देखिए -
रसिया है खिलाड़ी,
होरी को रसिया।
अबीर गुलाल भरत नैनन में,
डारत है रंग केशर को ।
पकड़ न पावत भाज जात है,
मूठा भर-भर रोरी को।। कंचन कुंवरी ने श्रीराम के साथ होली खेले जाने की कविता लिखते हुए परम्परागत शैली को तो अपनाया है किन्तु मर्यादाओं को कहीं भी नहीं लांघा है। जैसे-
खेलत ऐसी होरी,
करत रघुबर बरजोरी।।
करत रघुबर बरजोरी।।
नाको गेह खड़ो पनघट में
छैल सकारी खोरी
छैल सकारी खोरी
धूम मचावत, रंग बरसावत,
गावत हो-हो होरी
गावत हो-हो होरी
भरत अकम जोरा-जोरी।।
सारी तार-तार कर डारी,
मोतिन की लर तोरी
मोतिन की लर तोरी
‘कंचन कुंवरी’ मुरक गई
बेसर में बहुभांति निहोरी
बेसर में बहुभांति निहोरी
सुनी ऊने एक न मोरी।।
फागुनी उमंग में डूबे अवध नरेश श्री राम ने जब रानी कंचन कुंवरी को मार्ग में रोकने का प्रयास किया तब रानी को कौशल्या माता का वास्ता देना पड़ा-
मोरी छैको न गैल खैल रसिया
मदमाते छाक होरी के राजकुंवर
हो अवध बसिया
हो अवध बसिया
संग की सखियां दूर निकर गईं
हो जों अकेली, मोरो डरपै जिया
सास, ननद कहूं जो सुन पैहें
गारी दैहें, मोरे प्राण पिया
‘कंचन कुंवरी’ कौशल्या बरै
तन मन तुम पै वार दिया
मोरी छैको न गैल खैल रसिया
श्री राम से होली खेलने के लिए सीता जी से अनुमति लेने का ध्यान भी रानी कंचन कुंवरी ने रखा है और सीता यानी मिथिलेश लली से अनुमति मिल जाने पर रानी श्रीराम को सीता की भांति सजा कर होली खेलना चाहती है। यहां रानी का श्रीराम के प्रति ‘सखी भाव’ प्रकट होता है-
रसिया को आज पकड़ लैबी
है आज्ञा मिथिलेश लली की,
तुरतई पालन कर लैबी
सकल अभूषण प्यारी जी के
सज नागर भेष बना देबी
‘कंचन कुंवरी’ चरनन में नूपुर
नखन महावर दे देबी।।
श्रीराम की भक्त कवयित्री कंचन कुंवरी ने ब्रज और अवधी मिश्रित बुन्देली में भजन, बधाई, दादरा, बन्ना, झूला गीत और फाग गीतों की रचना की है जिन्हें आज भी समूचे बुन्देलखण्ड में ढोलक और मंजीरे के साथ गाया जाता है। किन्तु इन सभी रचनाओं में श्रीराम के साथ होली खेलने का वर्णन सबसे विशिष्ट कहा जा सकता है। भक्ति साहित्य में ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं।
सुन राम कथा मन पावन हे गओ
ReplyDeleteआज "शरद" मन फागुन हे गओ
भक्ति में डूब गयी जो "कंचन"
रानी को तन-मन कंचन हे गओ
"बुन्देली" में गीत सुनाये जो तुमने
बस्तर को पथरा भी फागुन हे गओ
दुर्लभ जानकारी दी आपने.
ReplyDeleteसादर
कौशलेन्द्र जी,
ReplyDeleteआप की सुन्दर टीप मिली ज्यों
मन को आंगन उपवन हे गओ....
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं !
आभारी हूं....विचारों से अवगत कराने के लिए।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
भक्ति रस से सजी यह रचना पढवाने के लिए आपका आभार ! राम भक्ति का अद्भुत रूप पहली बार देखा ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteसतीश सक्सेना जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद !
आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
रानी 'कंचन कुंवरी ' और उनकी कविता से परिचय प्राप्त हुआ .आपने खोज कर इस तथ्य को सार्वजनिक किया उसके लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteविजय माथुर जी,
ReplyDeleteआभारी हूं....विचारों से अवगत कराने के लिए।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....आपका सदा स्वागत है।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
नवीनतम जानकारी । आभार...
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
सुशील बाकलीवाल जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद !
आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
होली को बृज और वृदावन से जोडा जाता है, आप ने अयोध्या से लेख को सराबोर करके होली का नया रंग प्रस्तुत किया। बधाई।
ReplyDeleteशरद जी ,
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़ कर पहली बार श्री राम के साथ होली का प्रकरण का ज्ञान हुआ ... आभार इतनी सुन्दर पोस्ट के लिए ..
हाँय! ये सब जानकारी कैसे खोज लेती है आप!!
ReplyDeleteमर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के साथ होली खेलने की ज्ञान वर्धक दुर्लभ जानकारी देने के लिए आपका बहुत धन्यवाद............
आपको, आपके परिवार को होली की अग्रिम शुभकामनाएं!!
अति सुंदर...कलात्मक एवं प्रभावपूर्ण प्रस्तुति!
ReplyDeleteआनंददायक, अद्भुत जानकारी...कोटी-कोटी धन्यवाद
ReplyDeleteचंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद.....
इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें...
रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें!
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteआपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें!
मदन शर्मा जी,
ReplyDeleteआपके अमूल्य आत्मीय विचारों के लिए हार्दिक आभार...
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें....
रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें !
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद...
आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया....
रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें !
शम्भूनाथ जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद.....
इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें...
रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें!
बहुत सारी शुभकामनाएं
Deleteहोली कृष्ण लीला का पर्याय ही है हमारे ग्रंथो में . ये नवीन जानकारी रही मेरे लिए . वैसे मैंने कुछ होली के देशज गीत सुने है राम की होली जनकपुर में .
ReplyDeleteओम पुरोहित'कागद' जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
आपका स्वागत है!
रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें!
आशीष जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद.....
इसी तरह अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराते रहें...
होली की शुभकामनायें एवं आभार....
बहुत सुन्दर जानकारी डॉ शरद ।
ReplyDeleteडॉ॰ दिव्या श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद...
आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया....
रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें !
होली पर बहुत ही भावनात्मक और उम्दा पोस्ट
ReplyDeleteलिखा है आपने और चित्रों का भी
संकलन सुन्दर है . होली की ढेरों
बधाईयाँ !
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteसादर
सुरेश शर्मा (कार्टूनिस्ट)जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद...
आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया....
रंगपर्व होली आपको असीम खुशियां प्रदान करे..... शुभकामनायें !
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
आपको भी रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें!
हम आपसे निवेदन करते हैं -
ReplyDeleteकृपया निचे दिए लिंक द्वारा ब्लॉग पर
पधारें-
http://cartoondhamaka.blogspot.com/2011/03/blog-post_19.html#links
सुरेश शर्मा (कार्टूनिस्ट) जी,
ReplyDeleteआपका निवेदन सिर-आंखों पर....वैसे मैं तो लगभग प्रतिदिन cartoondhamaka के लाजवाब कार्टून देख कर अपनी टिप्पणी भी दिया करती हूं...
रंगपर्व होली आपको असीम खुशियां प्रदान करे..... शुभकामनायें !
बहुत ही अच्छा है। आपको बधाई।
ReplyDeletemy blog
www.hamara-chhattisgarh.blogspot.com
राजेन्द्र राठौर जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद...
आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया....
आपकी खोजी प्रवृत्ति आपके इस आलेख में साफ़ झलक रही है. आपने काफी अध्ययन किया है -ऐसा लगता है. मेरी बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteअबनीश सिंह चौहान जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद...
मेरे लेख को पसन्द करने और बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए हार्दिक आभार!
शायरी मेरे प्यार की
ReplyDeleteJai shri Ram