पृष्ठ

Sunday, March 27, 2011

प्राचीन भारत में स्त्रियों के प्रति समाज का दृष्टिकोणः भाग-एक


- डॉ. शरद सिंह
          

      प्राचीन भारत में समाज में स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन होता रहा। आरम्भिक काल में स्त्रियों को अनेक अधिकार प्राप्त थे तथा समाज में उनका पर्याप्त सम्मान था किन्तु गुप्तोत्तर काल तक समाज में स्त्रियों के अधिकार कम होते चले गए तथा उन पर प्रतिबंधों में वृद्धि होती गई। जिससे समाज में विवाहित और उसमें भी पुत्रवती स्त्री को अधिक सम्मान दिया जाने लगा तथा विधवाओं को कठोर अनुशासन में जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य किया जाने लगा।    

वैदिक काल -
अर्द्धनारीश्वर
   वैदिक ग्रंथों से ज्ञात होता है कि वैदिक काल में स्त्रियों का समाज में बहुत आदर था। परिवार में भी स्त्रियों को उचित स्थान दिया जाता था। स्त्रियों के विचारों का भी सम्मान किया जाता था। वे सभी सामाजिक तथा धार्मिक उत्सवों में अपने पति के साथ सम्मिलित होती थीं। विदुषी स्त्रियां पुरुषों के साथ शास्त्रार्थ करती थीं तथा उन्हें समाज में श्रेष्ठ समझा जाता था। विदुषी स्त्रियां अविवाहित रहती हुई अध्ययन तथा अध्यापन कार्य करने को स्वतंत्र रहती थीं। एक तथ्य ध्यान देने योग्य है कि इसी काल में स्त्री और पुरुष की शक्ति में समानता को स्थापित करने वाली ‘अर्द्धनारीश्वर’ की कल्पना की गई थी।  
  
महाकाव्य काल -
  
द्रौपदी : दशावतार मंदिर, देवगढ़, उत्तरप्रदेश
    इस काल में समाज में स्त्रियों के अधिकारों को सीमित कर दिया गया था। यद्यपि वे अपनी इच्छानुसार वर चुन सकती थीं किन्तु राक्षस विवाह के अंतर्गत उन्हें अपहृत कर विवाह करने के लिए भी बाध्य किया जाता था। स्त्रियां यदि चाहें तो वे अपने पति की अनुचित आज्ञाओं को ठुकरा सकती थीं। महाभारत के अनुसार द्रौपदी ने युधिष्ठिर द्वारा उसे जुए में हार दिए जाने के बाद युधिष्ठिर के जुए संबंधी वचनों को अनुचित ठहराते हुए दुर्योधन की दासी बनने से मना कर दिया था। माता की आज्ञा को शिरोधार्य माना जाता था। समाज भी उसे स्वीकार करता था। पांडवों ने अपनी माता कुन्ती की आज्ञा का पालन करते हुए द्रौपदी से विवाह किया था।

29 comments:

  1. बहुत अच्छी जानकारी मिली आपके इस आलेख से.

    सादर

    ReplyDelete
  2. यशवन्त माथुर जी,
    बहुत-बहुत धन्यवाद...
    आभारी हूं विचारों से अवगत कराने के लिए।

    ReplyDelete
  3. शरद जी ! बहुत ही अच्छी लेखमाला प्रारम्भ की है आपने. आगे और भी जानकारियों की प्रतीक्षा रहेगी. जन सामान्य के लिए अर्धनारीश्वर की परिकल्पना बाह्य दृष्टि से तो स्त्री-पुरुष समानता की द्योतक है परन्तु शरीर रचना शास्त्र और जेनेटिक्स की दृष्टि से भी एक वैज्ञानिक सत्य को डिपिक्ट करती है. इतना ही नहीं, जब हम परमाण्विक संरचना का अध्ययन करते हैं वहां फिर हमें इस अर्धनारीश्वर के दर्शन होते हैं. यह केवल हाइपोथीसिस ही नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य है.

    ReplyDelete
  4. स्त्रियों के प्रति समाज का दृष्टिकोण ..इस विषय पर आपका आलेख बहुत सारगर्भित है ..कृपया आप इस लेखमाला को आगे बढ़ाएं ..यही मेरी प्रार्थना है ...आपका आभार

    ReplyDelete
  5. आपका निष्कर्ष सही है .वस्तुतः उत्तरोत्तर स्त्रियों की दशा ह्रासमान रही है और इसका कारण समाज में शोषण एवं उत्पीडन की प्रवृति का बढ़ना रहा है जो आर्थिक विकास के साथ-साथ बढ़ता ही रहा.

    ReplyDelete
  6. एक अहम समस्या की ओर आपने ध्यान दिलाया। मातृ सत्तात्मक समाज जो ऋगवैदिक काल में था कैसे उसमें परिवर्तन आया और स्त्रियों की दशा बदलती गई इस प्रश्न पर भी पोस्ट लगाइए।
    रोचक शैली में आपने विषय को प्रस्तुत किया है।
    साज-सज्जा भी लाजवाब है।

    ReplyDelete
  7. स्त्रियों की स्थिति प्राचीन काल से क्या और कैसी रही इस विषय पर बहुत अच्छी श्रृंखला की शुरुआत ...आपको बधाई ...

    यह जानकारी देने हेतु ..आभार

    ReplyDelete
  8. आपकी लेखन शक्ति अद्भुत और बेहद उपयोगी है ! आभार !

    ReplyDelete
  9. कालखंड के मुताबिक स्त्रियों के अधिकार व उनमे होते रहे परिवर्तनों के प्रति आपकी यह पोस्ट निःसंदेह अनेक पाठकों का ज्ञानवर्धन कर रही है । कृपया इस जानकारी के विस्तार को अपने अगले लेखों में अवश्य शामिल करें । आभार सहित...

    ReplyDelete
  10. अद्भुत एवं उपयोगी श्रंखला।
    आभार !

    ReplyDelete
  11. लेख अधूरा लगा | महाकाव्य काल तक की ही चर्चा हो पाई | आशा है अगली कड़ी में लेख को विस्तार देंगी |

    ReplyDelete
  12. कौशलेन्द्र जी,
    ‘‘जब हम परमाण्विक संरचना का अध्ययन करते हैं वहां फिर हमें इस अर्धनारीश्वर के दर्शन होते हैं. यह केवल हाइपोथीसिस ही नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य है.’’

    बहुत विशिष्ट जानकारी दी आपने...मेरे इस लेख को पढ़ने वाले सभी पाठकों के लिए विषय से संबंधित रूप में ज्ञानवर्द्धक साबित होगी।

    आपने मेरे लेख को पसन्द किया आभारी हूं। इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

    ReplyDelete
  13. केवल राम जी,
    मेरे लेख पर अपने विचार प्रकट करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
    आपके अनुरोध ने मेरा उत्साह बढ़ाया...
    यह लेखमाला जारी रहेगी।

    ReplyDelete
  14. विजय माथुर जी,
    आपने सही लिखा-‘‘उत्तरोत्तर स्त्रियों की दशा ह्रासमान रही है और इसका कारण समाज में शोषण एवं उत्पीडन की प्रवृति का बढ़ना रहा है जो आर्थिक विकास के साथ-साथ बढ़ता ही रहा. ’’

    आपकी सुधी टिप्पणी के लिए आभारी हूं आपकी।
    मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!

    ReplyDelete
  15. मनोज कुमार जी,
    ‘‘मातृ सत्तात्मक समाज जो ऋगवैदिक काल में था कैसे उसमें परिवर्तन आया और स्त्रियों की दशा बदलती गई’’...यह सचमुच अहम प्रश्न है।
    इस विषय पर विस्तृत चर्चा मैं इस श्रृंखला के बाद अलग से प्रस्तुत करने का अवश्य प्रयास करूंगी।

    आपका सुझाव अच्छा है।
    आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया।
    हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ....
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

    ReplyDelete
  16. संगीता स्वरुप जी,
    आपने मेरे लेख की श्रृंखला की शुरुआत को पसन्द किया आभारी हूं।
    मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद !
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

    ReplyDelete
  17. सतीश सक्सेना जी,
    मेरे लेख को पसन्द करने और बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए के लिए हार्दिक धन्यवाद!

    ReplyDelete
  18. सुशील बाकलीवाल जी,
    आपका सुझाव अच्छा है।
    आपने मेरे लेख को पसन्द किया आभारी हूं।
    आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया..हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ....
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

    ReplyDelete
  19. दिव्या श्रीवास्तव जी, (ZEAL)
    मेरे लेख पर अपने विचार प्रकट करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

    ReplyDelete
  20. सी.एम. प्रशाद जी,
    मेरे लेख को पसन्द करने
    और मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद !

    ReplyDelete
  21. हेम पाण्डेय जी,
    आपका विचार सही है...लेख की शेष कड़ियां क्रमशः प्रस्तुत करूंगी...
    आपने मेरे लेख को पसन्द किया आभारी हूं।
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

    ReplyDelete
  22. स्त्रियों के प्रति समाज का दृष्टिकोण .रोचक शैली में आपने विषय को प्रस्तुत किया है।

    ReplyDelete
  23. संजय भास्कर जी,
    आपने मेरे लेख को पसन्द किया आभारी हूं।
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

    ReplyDelete
  24. बहुत बढ़िया जानकारी.
    इसे और विस्तृत कर दें.
    अलग अलग धर्मों की शुरुआत और उनके प्रसार के दौरान औरत की स्तिथि पर कृपया चर्चा करें.
    उम्मीद है आपने यही लिखने का सोचा होगा.
    आभार.

    ReplyDelete
  25. विशाल जी,
    आपका सुझाव अच्छा है कि-‘‘अलग अलग धर्मों की शुरुआत और उनके प्रसार के दौरान औरत की स्तिथि पर कृपया चर्चा करें.’’

    मैं इस विषय पर इस श्रृंखला के उपरांत अगली पोस्ट में अवश्य लिखूंगी। यह एक महत्वपूर्ण विषय है इसे इस श्रृंखला में समाहित करने पर विस्तृत चर्चा विषयान्तर प्रतीत हो सकती है।
    इस विषय पर एक स्वतंत्र श्रृंखला प्रस्तुत करूंगी।

    आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए आभारी हूं आपकी।
    मेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
    इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

    ReplyDelete
  26. मेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..

    ReplyDelete
  27. सारा सच,

    Corruption के खिलाफ सभी को एकजुट होना ही चाहिए....
    आपका प्रयास प्रशंसनीय है।

    ReplyDelete