गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों को मानवाकृति में प्रदर्शित करने की परम्परा गुप्त काल में फूली- फली। आरम्भ में द्वार के दोनों ओर मकर वाहिनी गंगा की मूर्ति एक ही रूप में बनाई जाती थी गंगा की मूर्ति की बनावट में विशेषता यह रहती थी कि गंगा फलयुक्त आम्रवक्ष की डाली पकड़े हुए अपने एक हाथ में घट लिये दिखाई दी जाती थी। कालान्तर में द्वार के दोनों ओर मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना अंकित की जाने लगी। इसके उदाहरण गुप्तकाल के अनेक मंदिरों के द्वार पर उत्खचित है। वस्तुतः आरम्भ में इस प्रकार की नदी देवियों की मूर्तियों प्रायः ही बनाई जाती थीं किन्तु चंदेल काल तक देवताओं के मंदिर प्रवेश द्वारों पर नदी देवियों को उकेरा जाने लगा।
खजुराहो में ब्रह्मा मंदिर के प्रवेश द्वार-शाखाओं के नीचे एक ओर गंगा और दूसरी ओर यमुना का चित्रण है। इसके अतिरिक्त प्रवेश द्वार में और कोई चित्रण नहीं है।
जगदम्बा मंदिर तथा चित्रागुप्त मंदिरों में भी मकर वाहिनी नदी देवी गंगा की एक-एक मूर्ति प्रदर्शित है।
सरस्वती को वीणा बजाते हुए प्रदर्शित किया गया है।
कन्दरिया महादेव मंदिर के गर्भगृह द्वार पर अंकित सप्त-शाखाओं के नीचे एक ओर मकरवाहिनी गंगा तथा दूसरी कूर्मवाहिनी यमुना की मूर्तियां हैं। इसी प्रकार विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह द्वार पर भी द्वार शाखाओं के नीचे वाहन सहित गंगा और यमुना अंकित हैं।
मकर वाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना द्विभुजी हैं। गंगा के हाथों में चंवर तथा कमल और यमुना के हाथों में चंवर तथा नीलोत्पल प्रदर्शित हैं। गंगा और यमुना दोनों ही कर्णाभूषण, हार, गै्रयेवक, बाजूबंद, करधनी तथा पैंजनी से अलंकृत हैं।
वाराह मंदिर की मुख्य प्रतिमा में वाराह के विशालकाय शरीर पर भी गंगा यमुना उत्खचित हैं।
खजुराहो में ब्रह्मा मंदिर के प्रवेश द्वार-शाखाओं के नीचे एक ओर गंगा और दूसरी ओर यमुना का चित्रण है। इसके अतिरिक्त प्रवेश द्वार में और कोई चित्रण नहीं है।
जगदम्बा मंदिर तथा चित्रागुप्त मंदिरों में भी मकर वाहिनी नदी देवी गंगा की एक-एक मूर्ति प्रदर्शित है।
सरस्वती को वीणा बजाते हुए प्रदर्शित किया गया है।
कन्दरिया महादेव मंदिर के गर्भगृह द्वार पर अंकित सप्त-शाखाओं के नीचे एक ओर मकरवाहिनी गंगा तथा दूसरी कूर्मवाहिनी यमुना की मूर्तियां हैं। इसी प्रकार विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह द्वार पर भी द्वार शाखाओं के नीचे वाहन सहित गंगा और यमुना अंकित हैं।
मकर वाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना द्विभुजी हैं। गंगा के हाथों में चंवर तथा कमल और यमुना के हाथों में चंवर तथा नीलोत्पल प्रदर्शित हैं। गंगा और यमुना दोनों ही कर्णाभूषण, हार, गै्रयेवक, बाजूबंद, करधनी तथा पैंजनी से अलंकृत हैं।
वाराह मंदिर की मुख्य प्रतिमा में वाराह के विशालकाय शरीर पर भी गंगा यमुना उत्खचित हैं।
अच्छी जानकारी मिली ..आभार
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी, आप जैसी प्रबुद्ध लेखिका की राय मेरे लिए महत्वपूर्ण है। हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteमनोज कुमार जी, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद!आपका स्वागत है।
ReplyDeleteउफ़्फ़!
ReplyDeleteमेरे पहुंचने से पहले आपका यह स्वागत ....
बहुत छुटपन में गया था खजुराहो, शाय्द १५-१७ के बीच कभी।
आपके आलेखों से एक नई दृष्टि मिलेगी। आभार।
मकरवाहिनी गंगा?
ReplyDeleteबड़ी तेजी से मंगर और घड़ियाल खत्म हुये हैं। पिछली साल मुझे स्वीट वाटर डॉल्फिन (सोइस) का आभास हुआ था गंगा में। पर बहुत जल्दी में ही गंगा और यमुना इंटेंसिव केयर यूनिट में चली गई हैं।
अच्छा है आपका यह ब्लॉग और बहुत सम्भावनाये हैं इसके एक निशे ब्लॉग बनने में। पर चार ब्लॉग मैनेज करना और इस ब्लॉग पर तीन महीने में कुल 6 पोस्टें - वही गड़बड़ है!
प्रभावित हुआ यहाँ आकर , भविष्य में पढने के लिए आज से फालो कर रहा हूँ ! हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteज्ञानदत्त पाण्डेय जी,हार्दिक धन्यवाद!आपका स्वागत है। आपकी चिन्ता वाज़िब है। आप जैसे प्रबुद्ध लेखक की राय मेरे लिए महत्वपूर्ण है। हमने संस्कृति और पर्यावरण के क्षेत्र में विगत में बहुत कुछ खोया है किन्तु अब हमें शेष को बचाने के लिए जनचेतना की आवश्यकता है। सही कहा न मैंने?
ReplyDeleteसतीश सक्सेना जी, मेरे ब्लॉग से जुड़ने और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है। सम्वाद क़ायम रखें।
ReplyDeleteपहली बार यहाँ आना हुआ. बड़ी प्रसन्नता हुई.मैं अकेला नहीं हूँ (पगला!). अच्छी जानकारी भी आलेख में है.
ReplyDeleteपी एन सुब्रमनियन जी, मेरे ब्लॉग पर आने और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद! आपका स्वागत है। सम्वाद क़ायम रखें।
ReplyDeleteशिल्प के साथ कला शैली का उल्लेख तो जरूरी है, जैसा आपने किया है, लेकिन काल भी लिखते चलें तो अधिक उपयोगी होगा. गंगा-यमुना की शिल्प परम्परा को यक्षी-शालभंजिका (सांची का तोरण याद कीजिए) से जोड़ कर देखा जाता है. गुप्त काल के अच्छे उदाहरण उदयगिरि, विदिशा में है. खरौद, छत्तीसगढ़ के इन्दल देउल (7-8 वीं सदी ई.) की गंगा-यमुना, इस मायने में विशिष्ट है कि यह अकेला ऐसा उदाहरण है, जिसमें पूरे द्वार शाख आकार की ऐसी प्रतिमाएं हैं.
ReplyDeleteराहुल सिंह जी ,आपका सुझाव अच्छा है। हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteYou have a nice space. I think there is lot for me here, to read. I loved reading about 'you' also. See you.
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर आकर बहुत अच्छा लगा .अपनी संस्कृति और परंपराओं की समझ के साथ प्राचीन इतिहास से जुड़ने का संयोग
ReplyDeleteमिला है हम सबको -इस सबसे जुड़ कर इस भीड़ में अपनी पहचान पाने का सुख मिलता है .आभार आपका !
प्रतिभा जी, अपने ब्लॉग पर आपको पा कर सुखद लगा। आपने ठीक लिखा है, अपनी संस्कृति और परंपराओं की समझ के लिए प्राचीन इतिहास से जुड़ना जरूरी है...मैं भी यही मानती हूं। इसी तरह सम्वाद बनाएं रखें।
ReplyDeletechitra Ji,
ReplyDeleteThanks for coming. You always welcome in my Blog. I think we should have proud on our culture and heritage. We have a wealthy history since from Prehistoric age. So we should protect it in any how.
bahut acha laga apke blog pe aakar, bahut kuch padne ko mila jo meri knowledge mein nahi tha.. shukriya..
ReplyDeletewww.lyrics-mantra.blogspot.com
धन्यवाद हरमन जी। मेरे ब्लॉग पर आपका हमेशा स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक आलेख......
ReplyDeleteआपको दीप पर्व की सपरिवार सादर शुभकामनाएं....
प्रथम बार यहाँ आना हुआ।बहुत अच्छा लगा आपके ही वय का भारतीय संस्कृति से जुड़ा व्यक्ति हूँ । यमुना पर वृहद् कार्य करने का संकल्प लिया है। आपसे चर्चा करना चाहता हूँ। विभास चन्द्र 9415348880 9450565203
ReplyDeleteधन्यवाद मैडम में कन्फ्यूज थी कुछ पढ़ा था वो मुझे गलत लग रहा था तो कन्फ्यूजन आपके लेख से खतम हुई
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