- डॉ. शरद सिंह
चंदेल काल की सबसे बड़ी उपलब्धि है खजुराहो के मंदिर। ये मंदिर चंदेल कालीन स्त्रियों की स्थिति पर समुचित प्रकाश डालते हैं। इनका निर्माण सन 950 ईस्वी से 1250 ईस्वी के मध्य किया गया। यही काल चंदेलकाल माना गया है।
1- तत्कालीन स्त्रियों को गायन वादन और नृत्य कला को सीखने की पूरी छूट थी। खजुराहो के वामन मंदिर में एक स्त्री को लम्बा इकतारा बजाती हुई उत्कीर्ण किया गया है। वहीं विश्वनाथ मंदिर में बांसुरी बजाती हुई स्त्री का सुंदर शिल्पांकन है।
2- चंदेलकालीन स्त्री को पढ़ने-लिखने का अधिकार था। इसके प्रमाण प्रतिमाओं में मिलते हैं । खजुराहो की मूर्तियों में पत्र पढ़कर चिन्तन में डूबी हुई स्त्री उदासी से ग्रस्त आंसू पोंछती हुई आंखें बंद किए अथवा सप्रयास पत्र देखती हुई स्त्री का अत्यंत भावपूर्ण तथा कलात्मक अंकन है। एक स्त्री बायां हाथ अपने वक्ष पर रखी और दायें हाथ में पत्र रखी हुई अंकित है। मानों वह पत्र पढ़ने के लिए अपना हाथ अपने वक्ष के मध्य रखी हुई हो। एक अन्य स्त्री दायें हाथ में कलम तथा बायें हाथ में पुस्तक थामी हुई दर्शाई गई है। खजुराहो के विश्वनाथ मंदिर में एक स्त्री को कागजों के पुलन्दे सहित दिखाया गया है। वह सामने खड़े पुरुष को कुछ समझा रही है। इसी मंदिर के अन्य दृश्य में एक स्त्री पुस्तक रख कर गुरु से पढ़ती हुई दिखाई गई है। अपने बायें हाथ में पत्र तथा दायें हाथ में कलम पकड़कर पत्र लिखती हुई स्त्री प्रतिमा का एक से अधिक मंदिरों में सुन्दर अंकन है। इस मुद्रा में वह सोचती हुई दर्शाई गई है कि पत्र में क्या लिखना है।
3- खजुराहो मूर्तिकला में कई ऐसे दृश्य हैं जो सिद्ध करते है कि तत्कालीन स्त्रियों में शस्त्र विद्या के प्रति अभिरूचि थी। आत्मरक्षा एवं शिकार के उद्देश्य से वे शस्त्र धारण करती थी। कंदरिया महादेव एवं जगदम्बा मंदिर के आधार फलक पर एक स्त्री को ऐसा भाला रखे हुये दिखाया गया है जिसके एक सिरे पर तीन पत्तियों के आधार का धारदार चाकू जुड़ा हुआ है। वामन मंदिर में एक स्त्री को परशु धारण किये हुये तथा एक अन्य स्त्री को धनुषबाण सहित प्रदर्शित किया गया है। इस स्त्री के बायें हाथ में धनुष है। जिस पर दायें हाथ से उसने धनुष पर तीर चढ़ाया हुआ है। तथा वह तीर छोड़ने को तत्पर है। उसके कंधे पर तरकश बंधा हुआ है। जिसमें कुछ अन्य तीर रखे हुये है। दूलादेव मंदिर में एक स्त्री हाथ में चाकू लेकर आक्रमण करने को तत्पर दिखायी गयी है। एक अन्य प्रतिमा में एक स्त्री को बड़ी तलवार थामे हुये दिखाया गया है। अपने दायें हाथ से उसने तलवार की नोंक पकड़ रखी है।
4- खजुराहो की मंदिर भित्तियों पर गोष्ठी एवं मंत्रणा के कई दृश्य अंकित हैं। जिनसे पता चलता है कि गोष्ठी एवं मंत्रणाओं में स्त्री और पुरूषों दोनों की सहभागिता होती थी।
5- खजुराहो की मंदिर भित्तियों के कुछ दृश्यों में स्त्रियों को गेंद खेलते दिखाया गया है। लक्ष्मण मंदिर में एक स्त्री दायें हाथ से बायें हाथ में गेंद उछाल रही है। वह पीछे की ओर से गेंद उछालने के प्रयास में है। इसी प्रकार के दृश्य जगदम्बा मंदिर लक्ष्मण मंदिर तथा कंदरिया महादेव मंदिर की भित्तियों पर भी है। इनमें एक दृश्य ऐसा भी है जिसमें एक स्त्री एक छोटे बालक के साथ है। वह बालक उसके पैरों के पास बैठकर गेंद लपकने को तत्पर है।
6- चंदेलकाल में स्त्रियों को चित्रकला में अभिरुचि संवारने का पर्याप्त अवसर दिया गया। खजुराहो मंदिर भित्ति पर एक स्त्री को दर्शकों की ओर पीठ कर के दायें हाथ से चित्र बनाती हुई दर्शाया गया है। उसका दायां हाथ सिर ऊपर उठा हुआ है। एक अन्य दृश्य में एक स्त्री दर्शकों की ओर पीठ कर के दीवार पर चित्र बना रही है। इस दृश्य में उस स्त्री के द्वारा बनाए गए वृक्ष की शाखाएं भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। पार्श्वनाथ मंदिर में अपने बायें हाथ में रंगों का पात्र लिए तथा दायें हाथ से चित्रा बनाती हुई स्त्री प्रतिमा है।
7- इस काल में स्त्रियों को सज-संवर कर सार्वजनिक उत्सवों में शामिल होने का अधिकार था। सौंदर्य प्रसाधनों में पाउडर (मुखचूर्ण), लिपिस्टिक (अधरराग), काजल, सिंदूर, इत्र आदि का प्रचलन था। भांति-भांति की हेयरस्टाईल्स (केशसज्जा) की जाती थी।
स्मृतिकाल से निरन्तर कम होते जा रहे अधिकारों की अपेक्षा चंदेलकालीन समाज में स्त्रियों को अधिक सम्मान तथा अधिकार प्राप्त था। इसका एक कारण जो मैंने अपने शोधकार्य के दौरान अनुभव किया कि चंदेल समाज पर स्मृतियों का नहीं बल्कि वेदों और पुराणों के उन तत्वों का प्रभाव था जो समाज को एक वृहद सुलझा हुआ दृष्टिकोण देते हैं। ये तत्व थे - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
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संदर्भः-
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