- डॉ. शरद सिंह
बौद्ध तथा जैन काल -
मायादेवी- अजन्ता |
बौद्ध तथा जैन युग में भी समाज में स्त्रियों को सम्मान दिया जाता था। यद्यपि इस युग में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा निम्न हो चली थी। बौद्ध ग्रंथों से ज्ञात होता है कि सास-ससुर के अभाव में ही पत्नी को परिवार की स्वामिनी माना जाता था। अशोक के अभिलेख से ज्ञात होता है कि जब किसी परिवार में कोई व्यक्ति रोगग्रस्त होता था, तब पुत्र और पुत्रियों के विवाह संस्कार या पुत्र जन्म के समय स्त्रियां अनेक मंगलिक, धार्मिक क्रियाएं करती थी।
बौद्ध काल में बौद्ध संघ में कुछ विदुषी स्त्रियों के होने का उल्लेख मिलता है। यद्यपि स्त्रियों के लिए संघ के नियम कठोर थे, फिर भी ज्ञान प्राप्ति के लिए अनेक स्त्रियां संघ की शरण जाती थीं और संघ द्वारा उन्हें स्वीकार किया जाता था।
चंदनबाला |
जैन काल में भी स्त्रियों को सम्मान दिया जाता था किन्तु स्त्रियों के लिए नियम कठोर थे। उनसे नियमपूर्वक धर्मपालन की अपेक्षा की जाती थी। ‘चंदनबाला की कथा’ तत्कालीन समाज में स्त्रियों की दशा से बखूबी परिचित कराती है। इस काल में स्त्रियां परिवार और परिवार के पुरुष सदस्यों के प्रति उत्तरदायी होती थीं। यद्यपि उन्हें शिक्षा पाने का अधिकार था, धर्म ग्रंथों को पढ़ने का अधिकार था।
दिगम्बर जैन सिद्धांतों के अनुसार भी स्त्रियां मुनित्व को प्राप्त नहीं कर सकती थीं।
स्मृति तथा सूत्रकाल -
माता-पुत्र..शुंगकाल 2-1 ईसापूर्व |
समाज में विवाहित स्त्री तथा माता को सम्मान दिया जाता था। मनु के अनुसार समाज में माता की प्रतिष्ठा उपाध्याय, आचार्य और पिता से भी अधिक होनी चाहिए। स्मृतिकारों का भी यही मत था कि यदि कोई पुरुष बलात् किसी स्त्री से संभोग कर ले तो उसके पति को उसे छोड़ना नहीं चाहिए। उस स्त्री के प्रायश्चित करने पर पति को उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए। बृहस्पति का मत था कि यदि शत्रु बलात् किसी स्त्री से संभोग कर ले तो उस स्त्री का परित्याग नहीं करना चाहिए। पति को चाहिए कि वह उस स्त्री से प्रायश्चित करा कर उसे वापस स्वीकार कर ले। अत्रि के अनुसार यदि कोई स्त्री किसी अन्य पुरुष के सहवास के कारण गर्भवती हो जाए तो जब बालक का जन्म हो जाए तब उसका पति उस बालक को किसी अन्य व्यक्ति को दे दे और प्रायश्चित करने पर उस स्त्री को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर ले। स्मृति काल की भांति सूत्रकाल में माता तथा विवाहित स्त्री को समाज में पर्याप्त सम्मान प्राप्त था किन्तु विधवा के लिए कठोर जीवन व्यतीत करने का विधान था।
स्मृतिकालीन वधु-सज्जा |
विवाह के बारे में स्मृतियों में कहा गया कि माँ-बाप को अपनी लड़कियों का विवाह छः और आठ वर्ष से बीच की आयु, अर्थात यौवनारम्भ, के पहले ही कर देना चाहिए। पति द्वारा के त्याग, उसकी मृत्यु, उसके द्वारा सन्यास ग्रहण, समाज द्वारा बहिष्कार तथा उसके नपुंसक होने जैसी कुछ विशेष स्थितियों में स्त्री को पुनर्विवाह की स्वीकृति थी। आम तौर पर औरतों को भरोसे लायक नहीं समझा जाता था। उनको अलग कर रखा जाता था और उन परिवार के पुरुष सदस्यों, पिता, भाई, पति, पुत्र आदि का नियंत्रण रहता था। लेकिन घर के अन्दर उनको आदर अवश्य ही दिया जाता था। यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी का त्याग करता था तो भले ही वह दोषी क्यों न हो, उसे पत्नी को रहन-सहन का खर्चा देना ही पड़ता था। भूमि पर व्यक्तिगत अधिकारों के बढ़ने के साथ स्त्री के सम्पत्ति-अधिकार भी बढ़ते गए। परिवार की सम्पत्ति को बनाए रखने के लिए स्त्री को पुरुष सदस्य की सम्पत्ति के अधिकार भी दिए गए। यदि बिना पुत्र प्राप्ति के किसी पुरुष की मृत्यु हो जाती थी तो कुछ मामलों में छोड़कर उसकी पत्नी को अपने पति की सारी जायदाद का अधिकार मिल जाता था। किसी विधवा की सम्पत्ति पर उसकी लड़कियों का अधिकार भी हो सकता था।
बौध काल के प्रारम्भ में महिलाओं का संघ में निशेध था।
ReplyDeleteउपन्यास ‘आम्रपाली’ में इसका सुंदर वर्णन मिलता है ॥
सी एम प्रशाद जी,
ReplyDeleteआपने सही कहा...‘बौध काल के प्रारम्भ में महिलाओं का संघ में निशेध था। उपन्यास ‘आम्रपाली’ में इसका सुंदर वर्णन मिलता है ॥ ’
आपने मेरे लेख को पसन्द किया आभारी हूं।
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
इसका मतलब बौद्ध काल स्त्रियों की दशा काफी कुछ अच्छी थी.मेरे लिए ये सारी जानकारी नयी है.
ReplyDeleteसादर
बहुत बढ़िया जानकारी ..
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है। इन के स्रोतों का उल्लेख भी होता तो और उपयोगी हो सकती थीं।
ReplyDelete...आज भी दक्षिण भारत में घूंघट प्रथा नहीं है पर उत्तर में इसे संस्कृति का जामा पहना दिया गया है
ReplyDeletedr.sharad,
ReplyDeleteCongratulations to you for such a wonderful blog site .In fact it is more than a blog full of meaningful content.I wish you all the best in your Endeavour’s.I also head an NGO and I know it is not easy to work selflessly.Keep it up
Regards
शरद जी! आप बड़े परिश्रम से पोस्ट तैयार करती हैं....साथ में स्रोत सन्दर्भ उल्लेखित कर देने से शोध छात्रों के लिए और भी उपयोगी हो जायेगी .
ReplyDeleteदेवांशु (शिवम्)जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए आपका शुक्रिया...
आपका स्वागत है....
चन्द्र प्रकाश दुबे जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए आपका शुक्रिया...
आपका स्वागत है....
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteआपका विचार सही है।
स्मृति या स्मृतितोत्तर काल से पहले स्त्रियों की दशा काफी कुछ अच्छी थी।
आभारी हूं कि आपने मेरे लेख को ध्यान से पढ़ा और
अपने विचार प्रकट किए...
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteआपने मेरे लेख को पसन्द किया आभारी हूं।
हार्दिक धन्यवाद!
सम्वाद बनाएं रखें।
दिनेशराय द्विवेदी जी,
ReplyDeleteसुझाव के लिए आभारी हूं...
जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
हार्दिक धन्यवाद!
काजल कुमार जी,
ReplyDeleteआपका विचार सही है कि..‘आज भी दक्षिण भारत में घूंघट प्रथा नहीं है पर उत्तर में इसे संस्कृति का जामा पहना दिया गया है ’
वस्तुतः विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा स्त्रियों के निरादर के भय से उत्तरभारत में घूंघट प्रथा स्त्रियों पर लादी गई थी जो आज भी ग्रामीण अंचलों में यथावत है...
Dr.Rajendra Tela,Nirantar" ji,
ReplyDeleteThank you for visiting my blog!
I am very glad to see your comment on my article.... I feel honored.
Hearty thanks.
कौशलेन्द्र जी,
ReplyDeleteसुझाव के लिए आभारी हूं...
जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
हार्दिक धन्यवाद!
वाकई मेरे लिये भी इनमें से अधिकांश जानकारियां नई ही हैं । आभार आपका...
ReplyDeleteसुशील बाकलीवाल जी,
ReplyDeleteआभारी हूं कि आपने मेरे लेख को ध्यान से पढ़ा और
अपने विचार प्रकट किए...
इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
बहुत बढ़िया जानकारी| धन्यवाद|
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteके.आ.जोशी जी, (Patali-The-Village)
ReplyDeleteआपने मेरे लेख को पसन्द किया आभारी हूं।
हार्दिक धन्यवाद!
सम्वाद बनाएं रखें।
अरविन्द शुक्ल जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
हार्दिक धन्यवाद!
nice कृपया comments देकर और follow करके सभी का होसला बदाए..
ReplyDeleteसारा सच जी,
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत धन्यवाद !
हमारे समाज में स्त्रियों के प्रति जो दृष्टिकोण है उसका सुंदर प्रस्तुतीकरण | और जानकारी की प्रतीक्षा में ......
ReplyDeleteगुर्रमकोंडा नीरजा जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
हार्दिक धन्यवाद!
भारतीय इतिहास के विभिन्न काल खंडो में नारी की स्थिति पर आपका ये आलेख माला संग्रहणीय है .
ReplyDeleteआशीष जी,
ReplyDeleteआपने मेरे लेख को पसन्द किया आभारी हूं।
हार्दिक धन्यवाद!
सम्वाद बनाएं रखें।