- डॉ. शरद सिंह
व्यक्तित्व को आकर्षित बनाने के लिये वेश-भूषा का महत्व सदैव रहा है. इससे
जहां एक ओर तत्कालीन संस्कृति का बोध होता है, वहीं दूसरी और
व्यक्ति की रुचि तथा जीवन के प्रति उसके दृष्टिकोण पर प्रकाश पड़ता है। गुप्तकाल
में प्रचलित वेशभूषा की अगली कड़ी खजुराहो की प्रतिमा-शिल्प में दिखाई देती है। शारीरिक
सौष्ठव के सौन्दर्य को उन्मुक्त भाव से प्रदर्शित करने के साथ ही वेश-भूषा के अंकन
को भी पर्याप्त महत्व दिया गया है। अर्थात् खजुराहो के शिल्पकारों ने मूर्तिकला के
सौन्दर्य में वेश-भूषा को एक महत्वपूर्ण तत्व माना है।
सुर-सुन्दरियों को साड़ी पहने हुये अंकित किया गया है, जो कमर से
एड़ी तक है जिसमें सामने की और चुन्नटें है. जिनका एक सिरा सामने की और लटकता रहता
था तथा दूसरा कांछ के समान पीछे खोंस लिया जाता था. जिससे यह चुस्त और सुविधाजनक
रहती थी. दूसरा ढंग सादा था जिसमें साड़ी को लुंगी के समान बांध लिया जाता था.
साड़ी का निचला सिरा एडि़यों से कुछ ऊपर तथा ऊपरी सिरा कमर के चारों और लिपटा रहता
था. पार्श्व नाथ तथा विश्वनाथ मंदिर में उत्कीर्ण एक सुन्दरी तथा अप्सरा को इसी
प्रकार की साड़ी पहने दिखाया गया है.
नर्तकियों की साड़ी
अपेक्षाकृत छोटी और पाजामे के समान चुस्त रहती थी। इस प्रकार की साड़ी की चौड़ाई
कम होती थी जिससे घुटनों तक का भाग ही ढंका रहता था। लक्ष्मण मंदिर में नृत्यरत्
एक अप्सरा को इसी प्रकार की धोती पहने दिखाया गया है. नर्तकियों एड़ियों से ऊपर
चुस्त पाजामा जैसा वस्त्र भी पहनती थीं।
सुर सुन्दरियों एवम् अप्सराओं की मूर्तियों
में वक्ष स्थल प्रायः अनावृत्त प्रदर्शित किया गया है किन्तु कुछ मूर्तियों में
चोली या कुच बंध का अंकन है। कंदरिया महादेव मंदिर में कामुक मुद्रा में प्रदर्शित
एक सुन्दरी को पट्टिका के रूप में चोली धारण किये है जिसे पीठ पर गांठ बांध कर
पहना गया है। लक्ष्मण मंदिर में एक अप्सरा को चोली पहनते हुये दिखाया गया है, जिसमें
वह दायें हाथ से अपने स्तन को थामे हुये है। उसका बांया हाथ सिर से होता हुआ दायें
कंधे की चोली को व्यवस्थित कर रही है। नृत्यांगनाओं की वेशभूषा दुपट्टा या चुनरी
विहीन है। लक्ष्मण मंदिर में कंदुक क्रीड़ा करती एक सुन्दरी को अवश्य दुपट्टा
युक्त अंकित किया गया है।
खजुराहो के मंदिर जहां एक ओर
धर्म और आध्यात्म से जोड़ते हैं, वहीं ये तत्कालीन नर्तकियों की वेशभूषा का बोध भी कराते हैं.
शिल्पकला में वेशभूषा की जानकारी देता हुआ उम्दा आलेख।
ReplyDeleteबढ़िया आलेख...
ReplyDeleteसादर।
इस तरह के आलेख से अर्जित जानकारी में निरंतर वृद्धि हो रही है।
ReplyDeleteमूर्तियों को पढ़ने की भाषा और समझने की कला सीख रहा हूँ आपसे...वरना हम तो जरा सा देखे और आगे बढ़ लिये ....
ReplyDeleteप्राचीन काल में लोगों की दृष्टि में आज जैसी लोलुपता नहीं रही होगी - ऐसा भी आभास होता है !
ReplyDeletesatik bislesan.....
ReplyDeletesundar varnan !
ReplyDeleteजितना आनन्द पढने में आया
ReplyDeleteउसे बताना मुश्किल है