- डॉ.सुश्री शरद सिंह
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक मानव से यह अपेक्षा की
जाती है कि वह कोई ऐसा काम न करे कि जिससे किसी भी दूसरे प्राणी को पीड़ा पहुंचे ।
इसी संकल्पना के मानक के रूप
में आचरण-शुचिता को संस्कृति के विकास का आधार माना गया है और इसी शुचिता को बनाए
रखने के लिए आचरण-संहिताएं बनाई गई
हैं । बलात्कार एवं व्यभिचार अथवा स्त्री-संग्रहण को सदैव अमानवीय  कृत्य 
माना गया है तथा इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है । भारतीय  संस्कृति में स्मृतिकारों ने यौन संबंधों में बलप्रयोग अथवा इच्छा विरुद्ध संबंध को अनैतिक माना है ।
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| याज्ञवल्यक्य | 
  ‘मितराक्षरा’ में याज्ञवल्यक्य 
ने स्पष्ट
किया है कि
किसी पुरुष का किसी स्त्री के साथ मात्र कामसुख के लिए बलात्
समागम करना व्यभिचार है । यह दण्डनीय  है । ‘मनुस्मृति’ में
बलात्कार को अपराध ठहराते हुए लिखा गया है कि पर-स्त्री संयोग की लालसा से जो दूसरी स्त्री को ग्रहण करे या पकड़े वह
संग्रहण (बलात्कार) का दोषी है । ‘मनुस्मृति’ में
तो यहां तक कहा गया है कि जो पुरूष परस्त्री के साथ रमणीय  एकान्त में वार्तालाप करता है तथा उसके
अस्पृश्य  अंगों (जंघा, वक्ष, कपोल आदि का स्पर्श करता है तो वह बलात्कार
का दोषी होगा।
बृहस्पति ने बलात्कार के तीन प्रकार बताए हैं-बल द्वारा, छल द्वारा और अनुराग द्वारा । जब
पुरूष एकान्त स्थान में स्त्री की इच्छा के विरूद्ध जब वह उन्मत्त या प्रतत्त हो
अथवा सहाय ता के लिए चीत्कार कर रही हो, उसके साथ बलपूवर्क यौनक्रिया करता है तो यह कृत्य बलपूवर्क किया गया बलात्कार कहलाएगा। जब कोई पुरूष किसी स्त्री को झूठे बहाने बना कर, छल, कपट
से एकान्त में ले जा कर अथवा धोखे से नशीले पदार्थ का सेवन करा कर उसके साथ यौनक्रिया करता है
तो यह कृत्य  छलपूवर्क किया गया बलात्कार कहलाएगा । इसी प्रकार जब कोई पुरूष मात्र कामपूर्ति की इच्छा से
किसी स्त्री के सम्मुख अपने अनुसार का छद्म प्रदर्शन करे तथा उसे विश्वास में ले
कर यौनक्रिया करे तो यह कृत्य  अनुराग
द्वारा बलात्कार की श्रेणी में रखा जाएगा ।
 बृहस्पति ने
अनुराग द्वारा बलात्कार की विशद व्याख्या करते हुए इसके तीन प्रकार बताए हैं -
प्रथम: कटाक्ष करना, मुस्कुराना, दूती भेजना, आभूषण एवं वस्त्रों को स्पर्श
करना ।
द्वितीय: सुगंध, मांस, मदिरा, अन्न, वस्त्र आदि उपहार में देना तथा मार्ग में साथ-साथ चलते हुए
वार्तालाप करना ।
तृतीय: एक ही शैया का प्रयोग करना, परस्पर क्रीड़ा, चुम्बन, आलिंगन आदि ।
  इसी प्रकार
‘विवाद रत्नाकर’ में व्यास ने बलात्कार की तीन
श्रेणियां बताई हैं - 1. परस्त्री से निजर्न स्थान में मिलना, उसे आकर्षित करना
आदि।  2.विभिन्न प्रकार के उपहार आदि भेजना
। 3. एक ही शैया अथवा आसन का प्रयोग करना । 
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| कौटिल्य | 
 इन उदाहरणों
से एक बात स्पष्ट
होती है कि
प्राचीन भारत के विधिशास्त्रियों ने प्रत्येक उस चेष्टा को बलात्कार की श्रेणी में
रखा जो प्राथमिक रूप में भले ही सामान्य प्रतीत हों किन्तु आगे चल कर बलात् यौनक्रिया में
परिवतिर्त हो सकती हो । वस्तुत: उन्होंने इन प्राथमिक क्रियाओं  को ‘मानसिक
बलात्कार’ माना । इसीलिए कात्यायन
ने नौ प्रकार के बलात्कारों अथवा व्यभिचारों का उल्लेख किया है – 
1. दूत के हाथों अनुचित अथवा कामोत्तेजक संदेश भेजना
।
2.अनुपयुक्त स्थान या काल पर परस्त्री के साथ पाया जाना।
3. परस्त्री को बलात् गले लगाना ।
4. परस्त्री के केश पकड़ना ।
5. परस्त्री का आंचल पकड़ना ।
6. परस्त्री के किसी भी अंग का स्पर्श करना ।
7. परस्त्री के साथ उसके आसन अथवा शैया पर जा बैठना।
8. मार्ग में साथ-साथ चलते हुए परस्त्री से अश्लील वार्तालाप करना ।
9. स्त्री अपहरण कर उसके साथ यौनक्रिया करना ।
बलात्कारी अथवा व्यभिचारी की पहचान के संबंध में भी
बड़े ही व्यावहारिक तथ्य  प्राचीन ग्रंथों
में मिलते हैं । याज्ञवल्क्य  ने बलात्कारी अथवा व्यभिचारी पुरुष की पहचान के
लिए उनके लक्षणों का वर्णन किया है जिन्हें देख कर बलात्कारी मनोदशा
वाले पुरूष को बंदी बनाया जा सके ।
ये लक्षण हैं - पुररुष द्वारा
परस्त्री के बालों को कामुकता से पकड़ना, अधोवस्त्र, चोली, आंचल आदि को छूना, अनुपयुक्त अथवा अनुचित स्थान पर रोक कर
कामुक निवेदन करना अथवा अश्लील वार्तालाप करना, परस्त्री के आसन अथवा शैया पर बैठना आदि । 
दण्ड का प्रावधान  
भारत के प्राचीन विधिशास्त्रियों ने बलात्कारियों के लिए दण्ड का निधार्रण करते हुए जिस बात को ध्यान में रखे जाने
का निदेर्श दिया है वह है स्त्री का विवाहित अथवा अविवाहित होना । बलात्कार जैसे
जघन्य  अपराध के लिए विभिन्न विधिशास्त्रियों द्वारा निधार्रित दण्डों का विवरण क्रमश: इस प्रकार है -         
बृहस्पति : बलात्कारी
की सम्पत्तिहरण करके उसका लिंगोच्छेद
करवा कर उसे गधे पर बिठा कर  घुमाया जाए ।
कात्यायन : बलात्कारी को मृत्युदण्ड दिया जाए ।
नारदस्मृति :बलात्कारी को शारीरिक दण्ड दिया जाना
चाहिए ।
कौटिल्य : सम्पत्तिहरण करके कटाअग्नि में जलाने का दण्ड दिया जाना चाहिए ।
याज्ञवल्क्य : सम्पत्तिहरण कर प्राणदण्ड दिया जाना चाहिए ।
मनुस्मृति  : एक हजार पण का अर्थदण्ड, निवार्सन, ललाट पर चिन्ह अंकित कर
समाज से बहिष्कृत करने का दण्ड दिया जाना चाहिए ।
ये दंड
विवाहित अथवा अविवाहित दोनों प्रकार वयस्क क्स्त्रयों के साथ बलात्कार की स्थिति
में निर्धारित किए गए थे । किन्तु अविवाहित कन्या विशेषरूप से अवयस्क कन्या के साथ
बलात्  यौनाचार की स्थति में (अपराध की जघन्यता के
अनुसार) प्रमुख दण्ड थे-
1-लिंगोच्छेदन
2-दो
उंगलियां काट दिया जाना
3-उंगलियां काटना तथा छ: पण का दण्ड
4-दो
सौ पण अर्थदण्ड
5-हाथ काट
दिया जाना तथा दोसौ पण अर्थदण्ड
6- मृत्युदण्ड
कौटिल्य  के
अनुसार कन्या के साथ बलात्कार करने में जो भी सहयोग करे, अवसर अथवा स्थान उपलब्ध कराए उसे भी अपराधी के समान दण्ड दिया जाना चाहिए । उंगली काटने अथवा मृत्युदण्ड का निधार्रण इस आधार पर होता
था कि बलात्कार किस प्रकार किया गया- लिंग
प्रवेश द्वारा अथवा उंगली
प्रक्षेप द्वारा ।
  दासी तथा वेश्याओं के साथ किए जाने वाले बलात्कार के लिए अलग से दण्ड विधान था । ऐसे किसी भी प्रकरण में निम्नानुसार दण्ड
दिया जा सकता था-
1-बारह
कृष्णल का अर्थदण्ड
2-चौबीस
पण का अर्थदण्ड
3-पचास
पण का अर्थदण्ड
4-एक
सहस्त्र पण का अर्थदण्ड
5-निवार्सन
6- मृत्युदण्ड
(अस्पृश्यस्त्री के साथ बलात् यौनक्रिया
पर -विष्णुधमर्सूत्र आधारित विष्णुस्मृति के अनुसार निधार्रित दण्ड)
    इस
प्रकार स्पष्ट
हो जाता है
कि बलात्कार जैसे अमानवीय  और जघन्य  अपराध के लिए प्राचीन दण्ड विधान में कठोर दण्ड दिए जाने के प्रावधान
थे ताकि समाज में ऐसे आपराधिक कृत्य  कम से
कम घटित हों, व्यक्ति
अपराध करने से डरे तथा स्त्रियां यौन-अपराधों से सुरक्षित रहें ।
 


 
