उत्तर प्रदेश में लखनऊ से सीतापुर मार्ग पर लखीमपुर खीरी से लगभग 12
कि.मी. दूर ओएल कस्बा है. यहां भारत का एकमात्र मेंढक मंदिर स्थित है.
लखीमपुर खीरी लखनऊ संभाग के अतंर्गत लखनऊ से उत्तर-पूर्व में स्थित है. यह
जनपद पश्चिम में शाहजहांनपुर तथा पीलीभीत, पूर्व में बहराईच, तथा
दक्षिण में हरदोई जिले की सीमाओं को स्पर्श करता है. इसी जिले में दुधुवा
राष्ट्रीय उद्यान भी है जिसे देखने प्रति वर्ष सैंकड़ों पर्यटक आते हैं. ये
पर्यटक ओयल भी अवश्य जाते हैं. ओयल का जितना पर्यटन की दृष्टि से महत्व है
उतना ही धार्मिक दृष्टि से भी महत्व है. लखीमपुर खीरी जिले में कुल छः
कस्बे हैं जिनमें से एक है ओयल.
अतीत में ओयल कस्बा प्रसिद्ध तीर्थ नैमिषारण्य क्षेत्र का एक हिस्सा था.
नैमिषारण्य और हस्तिनापुर मार्ग में पड़ने वाला कस्बा अपनी कला, संस्कृति
तथा समृद्धि के लिए विख्यात था. ओयल शैव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र था.
ओयल के शासक भगवान शिव के उपासक थे. ओयल कस्बे के मध्य में स्थित मेंढक
मंदिर पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर अद्भुत है.
ओयल का मेंढक मंदिर |
मेंढक मंदिर देश में अपने ढंग का अकेला और अनोखा मंदिर है. मेंढक एक ऐसा
उभयचर प्राणी है जो वर्षा होने की सूचना देता है. अतः इसे वृष्टि एवं
अनावृष्टि से संबंध माना जाता है. यह माना जाता है कि राज्य को सूखे तथा
बाढ़ की प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया गया.
अतीत में यह कस्बा नैमिषारण्य क्षेत्रा का एक हिस्सा था. नैमिषारण्य वही
प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है जहां दधीचि ने अपनी अस्थियां देवताओं को प्रदान की
थीं. अतः यह सम्पूर्ण क्षेत्र प्राचीनकाल से धार्मिक एवं आध्यात्मिक
क्रियाकलापों का केन्द्र रहा है.
ओयल के मेंढक मंदिर का शिखर |
मंदिर के आधार पर विशालकाय मेंढक-आकृति |
ओयल में विशालकाय मेंढक मंदिर प्राचीन तांत्रिक परम्परा का एक महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं. मेंढक मंदिर अड़तीस मीटर लम्बाई, पच्चीस
मीटर चौड़ाई में निर्मित एक मेढक की पीठ पर बना हुआ है. पाषाण निर्मित
मेंढक का मुख तथा अगले दो पैर उत्तर की दिशा में हैं. मेंढक का मुख 2 मीटर लम्बा, डेढ़ मीटर चौड़ा तथा 1 मीटर ऊंचा है. इसके पीछे का भाग 2 मीटर लम्बा तथा 1.5
मीटर चौड़ा है. पिछले पैर दक्षिण दिशा में दिखाई हैं. मेंढक की उभरी हुई
गोलाकार आंखें तथा मुख का भाग बड़ा जीवन्त प्रतीत होता है. मेंढक के शरीर का
आगे का भाग उठा हुआ तथा पीछे का भाग दबा हुआ है जोकि वास्तविक मेंढक के
बैठने की स्वाभविकमुद्रा है.
ग्यारहवीं सदी की तांत्रिक संरचनाओं में अष्टदल कमल का बहुत महत्व रहा
है. ओयल इस मंदिर ही अष्टदल कमल को विशेष महत्व दिया गया है. मंदिर का
आधार भाग अष्टदल कमल के आकार का बना हुआ है.
मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग |
मंदिर
का मुख्य द्वार पूर्व की ओर तथा दूसरा द्वार दक्षिण की ओर है. मंदिर में
काले-स्लेटी पाषाण का भव्य शिवलिंग है. जो श्वेत संगमरमर की 1 मीटर उंचाई तथा 0.7
मीटर व्यास की दीर्घा में गर्भगृह के मध्य स्थित है. इस शिवलिंग को भी कमल
के फूल पर अवस्थित किया गया है. इसके समीप उत्तर-पूर्व कोने पर श्वेत
संगमरमर की निर्मित नंदी वाहन की प्रतिम है. मंदिर के अंदर से सुरंग मार्ग
है. जो मंदिर के प्रांगण के बाहर पश्चिम की ओर खुलता है.यह आज भी प्रयोग
में लाया जाता है. अनुमान है कि प्राचीन काल में इस सुरंग मार्ग से राज
परिवार तथा विशिष्ट पुजारी गण आते-जाते रहे होंगे. मंदिर का विशाल प्रांगण
में जिसके मध्य यह मंदिर निर्मित है लगभग 100
मीटर का वर्गाकार है. मंदिर का निर्माण वर्गाकार जगती के उपर किया गया है.
मंदिर के उपर तक जाने के लिए चारो तरफ सीढ़ियां बनी हैं. सीढ़ियों द्वारा
भक्त उस धरातल पर पहुंचता है जहां से उसे आठ कोणीय सतह के उपर जाने का
मार्ग मिलता है. इस कोण के बाद अष्टदल कमल की अर्द्धवृत्ताकार पंखुड़ियों को
पार कर तीन वृत्ताकार सीढ़ियों के बाद अष्टकोणीय धरातल है. यहां पर
चतुष्कोणीय गर्भगृह है.
मंदिर का निर्माण ईंटों और चूने के गारे से किया गया है. इसमें सबसे नीचे
एक विशाल मेंढक का निर्माण किया गया है. उसके ऊपर पांच मीटर उंची जगती बनाई
गई है. जिसके चारो तरफ पांच सीढ़ियां हैं. मंदिर की बाहरी दीवारों पर
देवी-देवताओं, साधु-संतों
और योगियों की विभिन्न मुद्राओं में प्लास्टर निर्मित मूर्तियां हैं. सबसे
ऊपर मंदिर का गुम्बदाकार शिखर है. मंदिर के चारो कोनों पर चार अन्य छोटे
मंदिर निर्मित किए गए हैं. ये मंदिर भी वास्तु संरचना में अष्टकोणीय हैं.
किसी भी छोटे मंदिर में देव मूर्ति की स्थापना नहीं की गई है. मंदिर का
भीतरी भाग दांतेदार मेहराबों, पद्म पंखुड़ियों , पुष्प
पत्र अलंकरणों से चित्रांकित है. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में सहस्त्र कमल
दलों से अलंकृत सफेद संगमरमर की दीर्घा है. मंदिर के चारो ओर लगभग 150 मीटर वर्गाकार में चहारदीवारी निर्मित है.
मंदिर की दीवारों पर तथा चारो कोनों पर बने लघु मंदिरों की दीवारों पर शिव
साधना में रत अनेक आकृतियां उत्कीर्ण हैं. इनमें खड्ग धारिणी देवी
चामुण्डा, मोरनी
पर आरूढ़ चार शीश वाले देवता तथा आत्म-बलि के दृश्य बने हुए हैं. चार सिर
वाले देवता का चौथा सिर मुख्या सिर के ठीक ऊपर बनाया गया है. इनके ठीक पीछे
एक अन्य देवता विराजमान हैं. आत्म-बलि का दृश्य अद्भुत है. इसमें एक स्त्री
को करवट लेटे हुए एक पुरूष के शरीर पर बैठे हुए दिखाया गया है. वह स्त्री
अपने दाएं हाथ में धारदार हथियार रखे हुए है तथा उसके बाएं हाथ में उसका
कटा हुआ सिर है जिसका मुख खुला हुआ है. कटी हुई गरदन से रक्त की धार निकल
कर खुले हुए मुख में गिर रही है. मूलतः यह स्व-रक्तपान का दृश्य है जो
तांत्रिक अनुष्ठान की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है. उस स्त्री के दोनों
पार्श्व में सेविकाएं खड़ी हुई हैं जो इस तांत्रिक क्रिया की साक्षी एवं
सहयोगिनी हैं.
मंदिर की बाहरी दीव |
जिन विशालकाय ताखों में तांत्रिक क्रियाओं वाली मूर्तियों को प्रदर्शित
किया गया है वे बेल-बूटे के सुन्दर अंकनों से सुसज्जित हैं. मंदिर की भीतरी
दीवारों को भी सुंदर बेल-बूटों से सजाया गया है. मंदिर की जगती पर पूर्व
की ओर लगभग 2 फुट व्यास का एक कुआं बना हुआ है. ऐसा प्रतीत होता है कि इस कुए का जल-स्तर भूतल के समानांतर है. मंदिर के उत्तर में 2 की.मी. लम्बा और 1 कि.मी. कुण्ड है जो संभवतः भक्तजन के स्नान के लिए बनाया गया होगा.
यूं तो देश के अनेक स्थान पर तंत्रवाद से संबंधित मंदिर एवं प्रतिमाएं पाई
जाती हैं जिनमें चौसठ योगिनियों के मंदिर प्रमुख हैं किन्तु ‘मांडूक तंत्र’ पर आधारित यह मेंढक मंदिर अद्वितीय है.
shard ji, bahut achchi jankari di aap ne medak mandir ke bare maen.
ReplyDeletejarur jaunga dekhane .
pradeep srivastava
editor DIVYATA hindi monthly
LUCKNOW
बहुमूल्य जानकारी के लिए अनन्त साधुवाद।
ReplyDeletenice blog
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