गुप्तोत्तर काल
गुप्तोत्तर काल में 12-13 वीं शती तक स्त्रियों की स्थिति में तेजी से गिरावट आई। इस समय परस्पर दो विपरीत स्थितियां मौजूद थीं। एक ओर चंदेल राजवंश था जिसमें स्त्रियों के सामाजिक अधिकार बहुप्रतिशत थे जबकि दूसरी ओर राजपूत राजवंशों में स्त्रियों के सामाजिक अधिकारों में तेजी से कटौती होती जा रही थी। फिर भी 11वीं-12वीं शती तक स्वयंवर द्वारा पति चुनने का अधिकार राजवंश की स्त्रियों को था, कालान्तर में वह भी छिन गया।
1- गुप्तोत्तर काल में ही राजपूतों में पर्दा प्रथा आरंभ हुई जिसका प्रभाव अन्य द्विज जातियों पर भी पड़ा था। इस प्रथा ने स्त्रियों के अधिकारों को अत्यंत सीमित कर दिया। स्रियों की मर्यादाएं निश्चित कर दी गई। 3- बांझ स्रियों को अपने परिवार में तथा समाज में घोर प्रताड़ना सहन करनी पड़ती थी। ऐसी स्रियों को पारिवारिक एवं सामाजिक अवहेलना का शिकार होना पड़ता था।
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देवी पूज्य थी, स्त्री |
6- दासी प्रथा यथावत जारी रही।
दासियां वंशानुगत रुप से सेवकों के रुप में अपने स्वामी की सेवा करती थीं। ये दासियां अपने स्वामी की आज्ञा के बिना विवाह नहीं कर सकती थीं। जब कोई दासी विवाह योग्य हो जाती, तो उसे उसके स्वामी के समक्ष उपस्थित होना पड़ता। यदि उसके स्वामी को वह दासी पसंद आ जाती, तो उसका स्वामी उस दासी का विवाह किसी और दास के साथ करा कर दासी को अपनी वासनापूर्ति के लिए रख लेता। इससे दासी के बच्चों को दास का नाम पिता के रूप में मिलता, भले ही वे स्वामी की संतान होते। ये संतानें वंशानुगत दास मानी जातीं।
दासियां वंशानुगत रुप से सेवकों के रुप में अपने स्वामी की सेवा करती थीं। ये दासियां अपने स्वामी की आज्ञा के बिना विवाह नहीं कर सकती थीं। जब कोई दासी विवाह योग्य हो जाती, तो उसे उसके स्वामी के समक्ष उपस्थित होना पड़ता। यदि उसके स्वामी को वह दासी पसंद आ जाती, तो उसका स्वामी उस दासी का विवाह किसी और दास के साथ करा कर दासी को अपनी वासनापूर्ति के लिए रख लेता। इससे दासी के बच्चों को दास का नाम पिता के रूप में मिलता, भले ही वे स्वामी की संतान होते। ये संतानें वंशानुगत दास मानी जातीं।
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देवीः भौरमदेव (छत्तीसगढ़) |
8- स्त्रियों को पूरी तरह से दोयम दर्जे का समझा जाने लगा।
गुप्तोत्तर काल में एक भयावह प्रथा को बढ़ावा मिला, वह थी- जौहर प्रथा। पराजित राजाओं की रानियां एवं दासियां शत्रुओं से बचने के लिए आग में जीवित जल कर आत्महत्या करने लगीं। कई स्त्रियां सामूहिक रूप से भी जौहर करती थीं। इस कुप्रथा को भरपूर महिमामंडित किया जाने लगा।
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सती का पंजा (राजस्थ |