कोणार्क की नारी प्रतिमा |
- डॉ.शरद सिंह
क्या है ‘पगोडा’ ?
भाषाशास्त्रियों के अनुसार ‘पगोडा’ शब्द संस्कृत के ‘दगोबा’ शब्द का अपभ्रंश रूप है। बर्मी ग्रंथों में पगोडा शब्द का उद्भव लंका की भाषा सिंहल के शब्द ‘डगोबा’ से माना गया है जो मूलतः संस्कृत शब्द है। ‘डगोबा’ का अर्थ है ‘पवित्र अवशेषों की स्थापना का स्थल’। इन्हें ‘स्तूप’ भी कहा गया।
पगोडे पिरामिड आकार के, गुंबदीय अथवा बुर्ज की आकार के बनाए जाते थे।भारत में पगोडे मंदिरों के द्वार पर अथवा मुख्य मूर्तिस्थल के ऊपर बनाए गए।
बौद्ध पगोडे महात्मा बुद्ध तथा बौद्ध धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप स्मृति-स्थल के रूप में निर्मित हुए जबकि हिन्दू धर्म में हिन्दू मान्यताओं के अनुरूप इन्हें पूजा स्थल अर्थात् मंदिर का रूप मिला।
जुआंगझिओ का लौह पगोडा,चीन |
होरयू-जी मंदिर का पगोडा,जापान |
पगोडा निर्माण की परम्परा भारत से चीन और चीन से जापान होती हुई सुदूर पूर्व में विकसित होती गई। पगोडा संबंधित देशों के स्थानीय स्थापत्य शिल्प में बनाए गए। ये कई मंजिल के और भिन्न आकार के हो सकते थे।
Nice article,madam please tell me why Kornak Temple is called as 'Black Pagoda'? This is a Sun temple,has it shape like Pagoda of south east asia? similar question arise for Sapt Pagoda of Mahabalipuram. (
कोणार्क का ब्लैक पगोडा
कोणार्क का रथमंदिरः काला पगोडा |
रथ-मंदिर के बारह पहिये बारह महीनों के प्रतीक हैं और इसके पहिये की सोलह तीलियां दिन के समय का प्रतीक हैं । इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। मंदिर में खजुराहो की तरह मिथुन मुद्राओं वाली मूर्तियां भी हैं।
काले ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित होने के कारण कोणार्क के सूर्य मंदिर को ब्लैक पगोडा भी कहा जाता है।
महाबलीपुरम का सप्त पगोडा
महाबलीपुरम के रथ मंदिर अर्थात् सप्त पगोडा |
दक्षिण भारत में महाबलीपुरम अथवा मामल्लपुरम में स्थित
‘सप्त पगोडा’ महाभारत महाकाव्य के पांडव भाइयों के रथों के रूप में निर्मित है। महाबलीपुरम् की वास्तुकला की तीन प्रमुख शैलियों का सम्बंध राजा मामल्य, उनके बेटे नरसिंह वर्मन और राजसिंह के शासन काल से है । महाबलीपुरम् की शैली सबसे प्राचीन और सरल है जो चट्टान को काटकर बनाये गये मंदिरों में पायी जाती है । लगभग 8 वीं तथा उसके बाद नरसिंहवर्मन और राजसिंह काल में ग्रेनाइट पत्थर के शिला-खंडों से मंदिरों का निर्माण किया गया था ।
‘सप्त पगोडा’ महाभारत महाकाव्य के पांडव भाइयों के रथों के रूप में निर्मित है। महाबलीपुरम् की वास्तुकला की तीन प्रमुख शैलियों का सम्बंध राजा मामल्य, उनके बेटे नरसिंह वर्मन और राजसिंह के शासन काल से है । महाबलीपुरम् की शैली सबसे प्राचीन और सरल है जो चट्टान को काटकर बनाये गये मंदिरों में पायी जाती है । लगभग 8 वीं तथा उसके बाद नरसिंहवर्मन और राजसिंह काल में ग्रेनाइट पत्थर के शिला-खंडों से मंदिरों का निर्माण किया गया था ।
विष्णु प्रतिमा, मामल्लपुरम |
मामल्ल शैली का विकास नरसिंह वर्मन प्रथम के काल में हुआ। इसके अन्तर्गत रथ मंदिरों का निर्माण किया गया। ये मंदिर मामल्लपुरम में हैं। रथ मंदिर में द्रौपदी रथ सबसे छोटा है। इसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं है। धर्मराज रथ के रथ मंदिर पर नरसिंह वर्मन की मूर्ति अंकित है। ग्रेनाइट पत्थर के पत्थरों से बनाए जाने तथा सात की संख्या में होने के कारण इन रथों को 'सप्त पगोडा' भी कहा जाता है। सप्त पगोडा के अन्तर्गत निम्नलिखित रथ बनें- 'धर्मराज रथ', 'भीम रथ', 'अर्जुन रथ', 'सहदेव' रथ, 'गणेश' रथ, 'वलैयकुट्ई' रथ और 'पीदरी' रथ।
कोणार्क का सूर्य मंदिर अर्थात् ब्लैक पगोडा और महाबलीपुरम का सप्त पगोडा भारतीय शिल्प एवं स्थापत्य कला की कालजयी धरोहर हैं।
बहुत अच्छी जानकारी देती आपकी पोस्ट अच्छी लगी ...
ReplyDeleteकोणार्क के सूर्य मंदिर को युनेस्को द्वारा सन 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है.
इस जानकारी के लिए शुक्रिया
ज्ञानवर्धक जानकारी है।सूरी के रथ मेन सात घोड़े सार रंगों के प्रतीक के रूप मेन हैं।
ReplyDeleteअपूर्व एतिहासिक जानकारी!! इन्हें पगौड़ा कहा जाता है पहली बार जाना। हम तो यही समझते थे कि बौध चेत्यों स्तूपों को ही पगौड़ा कहा जाता है।
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteकृतज्ञ हूं कि आपने मेरे लेख को पसन्द किया.
हार्दिक धन्यवाद!
विजय माथुर जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
आभारी हूं...
सुज्ञ जी,
ReplyDeleteआभारी हूं कि आपने मेरे लेख को ध्यान से पढ़ा और
अपने विचार प्रकट किए...हार्दिक धन्यवाद!
डॉ. शरद जी उपकृत हूं, इस बेहतरीन तथ्यात्मक और स्थापत्य से संबंधित जानकारी प्राप्त कर।
ReplyDeleteआज जाना कि क्यों सूर्यमंदिर को ब्लैक पगोडा कहा जाता है। बचपन से केवल सुनते और पढ़ते आ रहे थे, और यह मान लिए थे कि काले रंग का होगा इसलिए कहते होंगे।
चित्रों ने इस पोस्ट के महत्व को कई गुणा बढा दिया है। अमूल्य निधि दे रही हैं आप ब्लॉगजगत को।
आभार इस प्रस्तुति के लिए।
बहुमूल्य जानकारी के लिये धन्यवाद, एक अनुरोध है कि जल्दी जल्दी नयी पोस्ट लिखा करें ।
ReplyDeleteमनोज कुमार जी,
ReplyDeleteआपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया...हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ... कृपया इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।
नीरज रोहिल्ला जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
आभारी हूं...
प्रायः यह समझा जाता है कि पगोडा चीनी या बर्मी बौद्ध शिल्प कला है। इस विषय पर अच्छी जानकारी के लिए आभार॥
ReplyDeleteचंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी,
ReplyDeleteकृतज्ञ हूं कि आपने मेरे लेख को पसन्द किया.
हार्दिक धन्यवाद!
उपरोक्त उत्कृष्ट एवं सारगर्भित जानकारी हेतु धन्यवाद,तो क्या
ReplyDeleteइन मंदिरों के निर्माण स्थल में पवित्र अवशेषों की स्थापना
की गयी है ठीक बौध स्तूपों जैसे?
रोहित बिष्ट जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
इन मंदिरों के निर्माण स्थल में पवित्र अवशेषों की स्थापना नहीं की गई है. पगोडा स्थापत्य शिल्प की एक शैली है जिसे विभिन्न काल, स्थान और धार्मिक परम्पराओं के अनुरूप अपनाया गया.
बेहद अच्छी जानकारी दी हैं आपने.....चित्रों के साथ और भी रोचक बन पड़ी है.धन्यवाद.
ReplyDeletecd sarada ji,
ReplyDeleteThanks for your comments.Hope you will be give me your valuable response on my future posts.
ऐसी रोचक जानकारियाँ पढ़कर मन तो अपने आप ही इन मंदिरों की यात्रा करने चल दिया लेकिन पता नहीं तन कब पहुंचेगा | हालांकि मन को वहाँ तक पहुंचाने में आपकी रोचक भाषा के साथ चित्रों की उपस्थिति ने विशेष योगदान दिया है |
ReplyDeleteघर बैठे ज्ञान वृद्धी हो गयी इतिहास की अच्छी झलकियां देखने मिलती है आपके ब्लाग मे
ReplyDeleteदेवांशु (शिवम्) जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
अरुणेश सी दवे जी,
ReplyDeleteकृतज्ञ हूं कि आपने मेरे लेख को पसन्द किया.
हार्दिक धन्यवाद!
अभी देखा नहीं है।
ReplyDeleteprakriti ke kareep rahne ke liye mai akshar hindustan ke kone kone men ghumta rahata hun.ji chahta hai kuch likhoon. prerna deti prastuti--itihas hee hamen khud se rubaru karati hai.
ReplyDeleteएतिहासिक जानकारी!
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी और रोचक जानकारी।
ReplyDelete-------
कल 27/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
संदीप पवाँर जी,
ReplyDeleteकभी अवसर मिले तो अवश्य देखिए.
नीलम चंद जी,
ReplyDeleteकृतज्ञ हूं कि आपने मेरे लेख को पसन्द किया.
हार्दिक धन्यवाद!
संजय भास्कर जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteमेरे लेख को पसन्द करने तथा उसे नयी पुरानी हलचल पर लिंक करने के लिए हार्दिक आभार!
शरद जी सांस्कृतिक महत्व की इस जानकारी के लिए आपका आभार।
ReplyDelete.......
प्रेम एक दलदल है..
’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।
ज्ञानवर्धक जानकारी है!!
ReplyDeleteज्ञानवर्धक पोस्ट एतिहासिक जानकारी पढ़ने को मिली बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त जी :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी...
ReplyDeleteसादर....
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ जी,
ReplyDeleteकृतज्ञ हूं कि आपने मेरे लेख को पसन्द किया.
हार्दिक धन्यवाद!
सवाई सिंह राजपुरोहित जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
मीनाक्षी पंत जी,
ReplyDeleteआभारी हूं कि आपने मेरे लेख को ध्यान से पढ़ा और
अपने विचार प्रकट किए...हार्दिक धन्यवाद!
एस एम हबीब जी,
ReplyDeleteमेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति है.. ..
ReplyDeleteचित्रों के साथ पढने में मजा आ रहा है ..
SARADA.C.D. ji,
ReplyDeleteHearty Thanks for your comment...
You are always welcome in my blog.
बहुत बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
प्राचीन स्थापत्य कला में ऐतिहासिक और धार्मिक तत्वों का निर्देशन बहुत कम पढ़ने को मिलता है .आपकी रोचक शैली और चित्रों के संयोजन से बहुत उपयोगी जानकारी मिलती है -आभार स्वीकारें !
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी...मेरे लिए काफी रुचिकर है आपका यह ब्लाग।
ReplyDeleteइतिहासिक विरासत की तार्किक शब्द - श :व्याख्या करता एक महत्वपूर्ण ,प्राचीन इतिहास और मानव शाश्त्र शोध छात्रों के लिए उपयोगी पोस्ट .पगोडा शब्द का उद्गम और दृष्टांत की खूबसूरत व्याख्या लिए .
ReplyDeleteभाषाशास्त्रियों के अनुसार ‘पगोडा’ शब्द संस्कृत के ‘दगोबा’ शब्द का अपभ्रंश रूप है। बर्मी ग्रंथों में पगोडा शब्द का उद्भव लंका की भाषा सिंहल के शब्द ‘डगोबा’ से माना गया है जो मूलतः संस्कृत शब्द है।पधारें .Super food :Beetroots are known to enhance physical strength,say cheers to Beet root juice.Experts suggests that consuming this humble juice could help people enjoy a more active life .(Source: Bombay Times ,Variety).
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_07.html
ताउम्र एक्टिव लाइफ के लिए बलसंवर्धक चुकंदर .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
Erectile dysfunction? Try losing weight Health
बबली जी,
ReplyDeleteमेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
प्रतिभा सक्सेना जी,
ReplyDeleteकृतज्ञ हूं कि आपने मेरे लेख को पसन्द किया.
हार्दिक धन्यवाद!
सुधीर जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
सुधीर जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरा लेख पसन्द आया....
वीरूभाई जी,
ReplyDeleteमेरे लेख को पसन्द करने के लिए हार्दिक आभार !
आप का यह आलेख बहुत अच्छा लगा. मेरे लिए यह विषय बहुत प्यारी है. मेरे ब्लॉग पर कभी पधारें. निराश नहीं होना पड़ेगा.
ReplyDeletehttp://mallar.wordpress.com
शानशान प्रदर्शन
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteसुंदर ज्ञान धन्यवाद आपका
ReplyDeleteसप्तोएगोड़ा में गणेश मंदिर नहीं। ह क्या कृपा बताए
अच्छा लगा मैम पढ़ के
ReplyDeleteपर ये द्रोपदी रथ सप्त पैगोडा में शामिल हैं या नहीं ये
समझ नहीं आया
Thanku mam
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी मिली इस वेबसाइट से। आपसे आशा करते हैं, इस प्रकार की जानकारी हमें भविष्य में भी प्रदान करेंगे..!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी दी आपने।
ReplyDeleteधन्यवाद। आगे भी ऐसी जानकारी अपेक्षित है।
Hamare itihas roopi panno ko aap logo ke dwara hi vartmaan me laya jata hai jisse hame hamare bhat ke gaurav ke bare me pta chlta hai..
ReplyDeleteApka bhut abhari hu
Bhut Hi Achi Jankari Di Aapne Thank you 😊 mam
ReplyDeleteबहुत ही हर्षितभाव से आपको धन्यवाद देना चाहता हूं, भले ही ये लेख मैं आज 10 वर्षों के बाद देख रहा हूँ पर ये उतना ही ज्ञानपूर्ण है।
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteGauravpurna itihas ke un mahaan kalaao ka jaankaari Dene k liye dhanyawaad
ReplyDelete